==एकाशन के लिए तिथिविचार== ज्योतिष शास्त्र में एकाशन के लिए बताया गया है कि ‘मध्याह्नव्यापिनी ग्राह्या एकभत्तेâ सदा तिथि:’ अर्थात् दोपहर में रहने वाली तिथि एकाशन के लिए ग्रहण करनी चाहिए। एकाशन दोपहर में किया जाता है, जो एक भुक्तिका—एक बार भोजन करने का नियम लेते हैं, उन्हें दोपहर में रहने वाली तिथि में करना चाहिए। एकाशन करने के सम्बन्ध में कुछ विवाद है। कुछ आचार्य एकाशन दिन में कभी भी कर लेने पर जोर देते हैं और कुछ दोपहर के उपरान्त एकाशन करने का आदेश देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में एकाशन का समय निश्चित करते हुए बताया गया है कि ‘दिनार्धसमयेऽ—तीते भुज्यते नियमेन यत्’ अर्थात् दोपहर के उपरान्त ही भोजन करना चाहिए। यहाँ दोपहर के उपरान्त का अर्थ अपराण्हकालका पूर्व उप्ल भाग नहीं है, किन्तु अपराण्हकाल का पूर्व भाग लिया गया है। जो लोग एकाशन दस बजे करने की सम्मति देते हैं, वे भी ज्योतिषशास्त्र की अनभिज्ञता के कारण ही ऐसा कहते हैं। आजकल के समय के अनुसार एकाशन एक बजे और दो बजे के बीच में कर लेना चाहिए। दो बजे के बीच में कर लेना चाहिए। दो बजे के उपरान्त एकाशन करना शास्त्र विरुद्ध है। एकाशन के लिए तिथि का निर्णय इस प्रकार करना चाहिए कि दिनमान में पाँच का भाग देकर तीन से गुणा करने पर जो गुणनफल आवे, उतने घट्यादि मान के तुल्य एकाशन की तिथि का प्रमाण होने पर एकाशन करना चाहिए। उदाहरण—किसी को चतुर्दशी का एकाशन करना है, इस दिन रविवार को चतुर्दशी २३ घटी ४० पल है और दिनमान ३२ घटी ३० पल है। क्या रविवार को चतुर्दशी का एकाशन किया जा सकता है ? दिनमान ३२ / ३० में पाँच का भाग दिया—३२!३० ´ ५ · ६ / ३० इसको तीन से गुणा किया—६/३० ² ३० · १९ / ३० गुणनफल हुआ। मध्याह्नकाल का प्रमाण गणित की दृष्टि से १९ / ३० घट्यादि हुआ। तिथि का प्रमाण २३ / ४० घट्यादि है। यहाँ मध्याह्न काल के प्रमाण से तिथि का प्रमाण अधिक है अर्थात् तिथि मध्याह्न काल के पश्चात् भी रहती है, अत: एकाशन के लिए इसे ग्रहण करना चाहिए। अर्थात् चतुर्दशी का एकाशन रविवार को किया जा सकता है। क्योंकि रविवार को मध्याह्न में चतुर्दशी तिथि रहती है। ===दूसरा उदाहरण=== मंगलवार को अष्टमी ७ घटी १०पल है, दिनमान ३२/३० पल है। एकाशन करने वाले को क्या इस अष्टमी को एकाशन करना चाहिए ? पूर्वोक्त गणित के नियमानुसार ३२ /३० ´ ५ · ६ /३० इसको तीन से गुणा किया तो—६/३० ² ३ · १९ /३० घट्यादि गुणनफल आया, यही गणितागत मध्याह्नकाल का प्रमाण हुआ। तिथि का प्रमाण ७ घटी १० पल है, यह मध्याह्नकाल के प्रमाण से अल्प है, अत: मध्याह्नकाल में मंगलवार को अष्टमी तिथि एकाशन के लिए ग्रहण नहीं की जायेगी, क्योंकि मध्याह्नकाल में इसका अभाव है। अत: अष्टमी का एकाशन सोमवार को करना होगा। ===एकाशन करने के तिथि=== प्रमाण में और प्रोषधोपवास के तिथि प्रमाण में बड़ा भारी अन्तर आता है। प्रोषधोपवास के लिए मंगलवार को अष्टमी तिथि ७ /३० होने के कारण ग्राह्य है। क्योंकि छ: घटी से अधिक प्रमाण है, अत: उपवास करने वाला मंगल को व्रत करे और एकाशन करने वाला सोमवार को व्रत करे; यह आगम की दृष्टि से अनुचित सा प्रतीत होता है। जैनाचार्यों ने इस विवाद को बड़े सुन्दर ढंग से सुलझाया है। मूलसंघ के आचार्यों ने एकाशन और उपवास दोनों के लिए ही कुलाद्रि—छ: घटी प्रमाण तिथि ही ग्राह्य बतायी है। आचार्य िंसहनन्दि का मत है कि एकाशन के लिए विवादस्थ तिथि का विचार न कर छ: घटी प्रमाण तिथि ही ग्रहण करनी चाहिए। िंसहनन्दि ने एकाशन की तिथि का विस्तार रूप से विचार किया है, उन्होंने अनेक उदाहरण और प्रति उदाहरणों के द्वारा मध्याह्नव्यापिनी तिथि का खण्डन करते हुए छ: घटी प्रमाण को ही सिद्ध किया है। अतएव एकाशन के लिए पर्वतिथियों में छ: घटी प्रमाण तिथियों को ही ग्रहण करना चाहिए। ===‘तिथिर्यथोपवासे स्यादेकभक्तेऽपि सा तथा’=== इस प्रकार का आदेश रत्नशेखर सुरि ने भी दिया है। जैनाचार्यो ने एकाशन की तिथि के सम्बन्ध में बहुत कुछ ऊहापोह किया है। गणित से भी कई प्रकार से आनयन किया है। प्राकृत ज्योतिष के तिथि विचार प्रकरण में विचार—विनिमय करते हुए बताया है कि सूर्योदयकाल में तिथि के अल्प होने पर मध्याह्न में उत्तर तिथि रहेगी। परन्तु एकाशन के लिए रसघटी प्रमाण होने पर पूर्व तिथि ग्रहण की जा सकती है। यदि पूर्व तिथि रसघटी१ प्रमाण से अल्प है तो उत्तर—तिथि लेनी चाहिए। यद्यपि उत्तर—तिथि मध्याह्न में व्याप्त है, पर कुलाद्रि २ घटि का प्रमाण से अल्प होने के कारण उत्तर तिथि ही व्रततिथि है। अतएव संक्षेप में उपवास तिथि और एकाशन तिथि दोनों एक ही प्रमाण ग्रहण की गयी हैं। यद्यपि जैनेतर ज्योतिष में एकाशन—तिथि को व्रत तिथि से भिन्न माना है, तथा गणित द्वारा अनेक प्रकार से उसका मान निकाला गया है, परन्तु जैनाचार्यों ने इस विवाद को यहीं समाप्त कर दिया है। इन्होंने उपवास—तिथि को ही व्रत तिथि बतलाया है। एकाशन की पारणा मध्याह्न में एक बजे के उपरान्त करने का विधान किया गया है। यद्यपि काष्ठासंघ और मूलसंघ में पारणा के सम्बन्ध में थोड़ा—सा मतभेद हैं, फिर भी दोपहर के बाद पारणा करने का उदयत: विधान है।