एक्यूप्रेशर शरीर के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है। एक्यूप्रेशर हेतु आवश्यक निर्देश निम्नानुसार हैं।
१. उपचार के समय रोगी और चिकित्सक दोनों आराम दायक स्थिति में हो। २. प्रेशर के साथ—साथ पौष्टिक भोजन व हल्के व्यायाम का भी ध्यान रखें।
३. रोगी को बैठाकर या लिटाकर चिकित्सा करनी चाहिये।
४. बायें हाथ व पैर में पहले तथा दायें हाथ व पैर में बाद में चिकित्सा करनी चाहिए।
५. गंभीर रोगी के पहले मेरेडियन बिन्दु तथा बाद में प्रतिबिम्ब बिन्दूओं पर दबाव दें।
६. रोगी की शारीरिक क्षमता रोग व प्रेशर देने का अंग देखकर रोगी को सहन करने लायक दवाब देना चाहिये। प्रेशर सुखद होना चाहिए।
७. दबाव क्रम से करें अर्थात पहले अंगुलियों से शुरू करके एड़ी तक करना चाहिये।
८. हड्डी पर प्रेशर नहीं दें।
१. त्वचा में स्फूर्ति पैदा होती है।
२. शरीर में आवश्यक तत्वों का प्रसार होता है एवं मांस पेशी के तन्तुओं में लचक पैदा करता है।
३. शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बनी रहती है।
४. सम्पूर्ण शरीर सक्रिय रहता है एवं सुचारू रूप से कार्य करता है।
५. यह चिकित्सा घर पर स्वयं भी कर सकते हैं।
६. यह चिकित्सा पद्धति कम खर्चीली तथा बिना दवाई की चिकित्सा पद्धति है।
७. सरल चिकित्सा प्रणाली है।
८. पीड़ा रहित तथा सुरक्षित है।
९. यह पद्धति बहुत सरल है यहां तक कि बच्चे भी इसे सीख सकते हैं।
१०. इसे करने के लिए अधिक समय देने की जरूरत नहीं पड़ती तथा कहीं पर भी तथा किसी भी समय की जा सकती है। आंख, नाक, कान, तुतलाना, चर्मरोग, गर्दन,हाथ व कंधे का दर्द, हाथ की ऊँगली, अंगूठे में तकलीफ, कुहनी में दर्द, कमर में दर्द, सायटिका, जांघ का दर्द, पैर पिण्डली, एडियो का दर्द, जोडों का रोग, घुटनों का दर्द, साईटिका तथा अन्य कई बिमारियां एक्युप्रेशर के नियमित उपचार से आवश्य ही ठीक होती है तथा रोगी एकदम स्वस्थ हो जाता है। अत: सभी पाठकों से निवेदन है कि एक्यूप्रेशर को अवश्य ही अपनाना चाहिये तथा खुद स्वयं अपने परिवार को भी ये पद्धति अपनाकर स्वस्थ रख सकते हैं।