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एक अकलंक धरती पे आया है फिर!
June 15, 2020
भजन
jambudweep
एक अकलंक धरती पे
तर्ज-थक गया……
.
एक अकलंक धरती पे आया है फिर, जिसने सोते से सबको जगाया है फिर।
जिसने प्राचीन इतिहास पाया है फिर, बुझते दीपक को जिसने जलाया है फिर।।१।।
उसके कार्यों की महिमा जगत ख्यात है, नाम उस प्रतिभा का ज्ञानमति मात है।
चाहे हो कल्पद्रुम पाठ या रथ चला, विश्वमैत्री का उनसे मिला पाठ है।।२।।
कान में उंगलियाँ डाल बैठे थे हम, सुनते आए महावीर से जिनधरम।
क्या ये स्वीकार है बोलो भाई-बहन ? बस है पच्चिस सौ वर्षों से ही जिनधरम ?।।३।।
इस कथन पर हिली गर्दनें सबकी हैं, तेरे संग स्वीकृती मात हम सबकी है।
जैनशासन का ध्वज तेरे हाथों में हो, ध्वज के नीचे सभी जैन की शक्ति है।।४।।
बज गया फिर बिगुल ज्ञानमति मात का, होगा निर्वाण उत्सव ऋषभदेव का।
राजधानी सजे एक दुल्हन सदृश, सब घरों पर दिखे लहलहाती ध्वजा।।५।।
दो पगों के ही संग कोटि पग चल दिए, स्वर में स्वर को मिला कोटि स्वर खुल गए।
मेरा जिनधर्म है प्राकृतिक धर्म बस, ‘‘चन्दनामति’’ सदा मिष्ट फल देता ये।।६।।
श्री ऋषभदेव ने कर्म युग आदि में, षट्किया असि,मषी आदि बतलाई है।
उनके उपकारों का संस्मरण आज हो, प्रभु का निर्वाण उत्सव इसी हेतु है।।७।।
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