सिहरिस्सुत्तरभागे जंबूदीवस्स जगदिदक्खिणदो। एरावदो त्ति वरिसो चेट्ठदि भरहस्स सारिच्छो१।।२३६५।।
णवरि विसेसो तिंस्स सलागपुरिसा भवंति जे केई। ताणं णामप्पहुदिसु उवदेसो संपइ पणट्ठो।।२३६६।।
अण्णण्णा एदिंस्स णामा विजयड्ढवूडसरियाणं। सिद्धो रेवदखंडा माणी विजयड्ढपुण्णा य।।२३६७।।
तिमिसगुहो रेवदवेसमणं णामाणि होंति वूडाणं। सिहरिगििरदोवरि महपुंडरियदहस्स पुव्वदारेणं।।२३६८।।
रत्ता णामेण णदी णिस्सरिय पडेदि रत्तवुडम्मि। गंगाणइसारिच्छा पविसइ लवणंबुरासिम्मि।।२३६९।।
तद्दहपच्छिमतोरणदारेणं णिस्सरेदि रत्तोदा। सधुणईए सरिसा णिवडइ रत्तोदवुंडम्मि।।२३७०।।
पच्छिममुहेण तत्तो णिस्सरिदूणं अणेयसरिसहिदा। दीवजगदीबिलेणं लवणसमुद्दम्मि पविसेदि।।२३७१।।
गंगारोिंहहरिओ सीदाणारीसुवण्णवूलाओ। रत्त त्ति सत्त सरिया पुव्वाए दिसाए वच्चंति।।२३७२।।
शिखरी पर्वत के उत्तर और जम्बूद्वीप की जगती के दक्षिण भाग में भरतक्षेत्र के सदृश ऐरावत क्षेत्र स्थित है।।२३६५।। विशेष यह कि उस क्षेत्र में जो कोई शलाकापुरुष होते हैं, उनका नामादिविषयक उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है।।२३६६।। इस क्षेत्र में विजयाद्र्धपर्वत के ऊपर स्थित कूटों और नदियों के नाम भिन्न हैं। सिद्ध, ऐरावत, खण्डप्रपात, माणिभद्र, विजयाद्र्ध, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुह, ऐरावत और वैश्रवण ये नौ कूट यहाँ विजयाद्र्ध पर्वत के ऊपर हैं। शिखरी पर्वत के ऊपर स्थित महापुण्डरीक द्रह के पूर्व द्वार से निकलकर रक्ता नामक नदी रक्तकुण्ड में गिरती है। पुनः वह गंगानदी के सदृश लवणसमुद्र में प्रवेश करती है।।२३६७-१३६९।। उसी द्रह के पश्चिम तोरणद्वार से रक्तोदा नदी निकलती है और सिन्धुनदी के सदृश रक्तोदकुण्ड में गिरती है।।२३७०।। पश्चात् वह उस कुण्ड से निकलकर पश्चिममुख होती हुई अनेक नदियों से सहित होकर द्वीप की जगती के बिल से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है।।२३७१।। गंगा, रोहित्, हरित्, सीता, नारी, सुवर्णकूला और रक्ता, ये सात नदियाँ पूर्वदिशा में जाती हैं।।२३७२।। सिंधु, रोहितास्या, हरिकान्ता, सीतोदा, नरकान्ता, रूप्यकूला और रक्तोदा, ये सात नदियाँ पश्चिम दिशा में जाती हैं।।