जो भक्षण करने योग्य न हो वह अभक्ष्य कहलाते हैं । श्री स्वामी समन्तभद्राचार्य ने अभक्ष्य को बतलाते हुए कहा –
त्रसहति परिहरणार्थ क्षौद्रं पिशितं प्रमादपरिहृतये ।
मद्यं च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातै: ।।८४।।
मूलत: अभक्ष्य के त्रसहिंसाकारक आदि पांच भेद बताए हैं तथा अभक्ष्य बाईस भी माने है जो इस प्रकार हैं –
ओला, घोर, बड़ा, निशि भोजन, बहुबीजा बैगन संधान ।
बड़ पीपर ऊमर कङ्ग ऊमर, पाकर फल या होय अजान ।।
कंदमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरू मदिरापान ।
फल अतितुच्छ तुषार चलित रस ये बाईस अभक्ष्य बखान ।|
जो अत्यधिक वर्षा होने पर वर्फ के छोटे – २ गोल टुकड़ो के रूप में पृथ्वी पर गिरता है ओला कहलाता है जिसे किसी अंग के जल जाने पर औषधि रूप में इस्तेमाल करते है । ओले गिरने से उस स्थान में तथा आस पास के शहरादि में शीत का प्रकोप बढ़ जाता है ।