असाध्य भी सर्व रोगो की निवृत्ति की हेतूभूत औषधि ऋद्धि आङ्ग प्रकार की है – आमर्ष, क्ष्वेल, जल्ल, मल, विट् , सर्व आस्याविष और दृष्टिनिर्विष ।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से जीव पास में आने पर ऋषि के हस्त व पादाति के स्पर्शमात्र से ही निरोग हो जाते है वह आमर्षौषधि ऋद्धि है । जिस ऋद्धि के प्रभाव से लार, कफ, अक्षिमल और नासिकामल शीघ्र ही जीवों के रोगो को नष्ट करता है वह क्ष्वेलौषधि ऋद्धि है । पसीने के आश्रित अंग रज जल्ल कहा जाता है जिस ऋद्धि के प्रभाव से उस अंग रज से भी जीवों के रोग नष्ट हो जाते हैं वह जल्लौषधि ऋद्धि कहलाती है । जिस शक्ति से जिव्हा, ओङ्ग, दांत , नासिका और श्रोत्रादिक का मल भी जीवो के रोगो को दूर करने वाला होता है वह ‘मलौषधि’ नामक ऋद्धि है । जिस शक्ति से मूत्र, विष्ठा भी जीवों के भयानक रोगों का नाश कर देवे वह विप्रषौषधि ऋद्धि है । जिस शक्ति से स्पर्शित जल, वायु आदि सम्पूर्ण व्याधियों का नाश करने वाला होता है वह सर्वौषधि ऋद्धि है ।
जिस ऋद्धि से तिक्तादित रस व विष से युक्त विविध प्रकार का अन्न वचन मात्र से ही निर्विषता को प्राप्त हो जाता है वह ‘वचननिर्विष’ नामक ऋद्धि है अथवा जिनके मुख से निकले हुए वचन के सुनने मात्र से महाविष व्याप्त भी कोई व्यक्ति मिर्विष हो जाता है वह आस्यविष ऋद्धि है । रोग और विष से युक्त जीव जिस ऋद्धि के प्रभाव से झट देखने मात्र से ही निरोगता और निर्विषता को प्राप्त कर लेते है वह दृष्टिनिर्विष ऋद्धि है ।