यह देश सदा परचक्र की भीति से रहित, अन्याय प्रवृत्तियों से विहीन और अतिवृष्टि-अनावृष्टि से परित्यक्त है।।२२५१।। उदुम्बरफलों के सदृश धर्माभास वहाँ सुने नहीं जाते। शिव, ब्रह्मा, विष्णु, चण्डी, रवि, शशि व बुद्ध के मंदिर वहाँ नहीं हैं।।२२५२।। वह देश पाषण्ड सम्प्रदायों से रहित और सम्यग्दृष्टि जनों के समूह से व्याप्त है। विशेष इतना है कि यहाँ किन्हीं जीवों के भावमिथ्यात्व विद्यमान रहता है।।२२५३।। वेदी और चार तोरणों से युक्त कक्षादेश का उपसमुद्र मागध, वरतनु एवं प्रभास द्वीपों से शोभायमान है।।२२५४।। कच्छादेश में नर-नारियों की आयु का प्रमाण जघन्यरूप से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टरूप से पूर्वकोटिमात्र है।।२२५५।। पूर्व १०००००००। वहाँ पर विविध वर्णों से युक्त नर-नारियों के शरीर की ऊँचाई पाँच सौ धनुष और पृष्ठभाग की हड्डियाँ चौंसठ होती हैं।।२२५६।। ५००। ६४। कच्छादेश के बहुमध्यभाग में पचास योजन विस्तार वाला और देशविस्तार समान लंबा दीर्घ विजयाद्र्ध नामक पर्वत है।।२२५७।। ५०। २२१२-७/८। उत्तम भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजयाद्र्ध के विषय में जिस प्रकार सम्पूर्ण वर्णन किया गया है उसी प्रकार इस विजयाद्र्ध का भी वर्णन समझना चाहिए। उक्त पर्वत की अपेक्षा यहाँ जो कुछ विशेषता है उसका निरूपण किया जाता है।।२२५८।। इस पर्वत के ऊपर दोनों तटों में से प्रत्येक तट पर विद्याधरों के पचपन नगर हैं, और कूटों के नाम भिन्न-भिन्न हैं।।२२५९।। सिद्ध, कच्छा, खण्डप्रपात, पूर्णभद्र, विजयाद्र्ध, माणिभद्र, तिमिश्रगुह, कच्छा और वैश्रवण, ये क्रमशः इस विजयाद्र्ध के ऊपर स्थित नौ कूटों के नाम हैं।।२२६०।। मणिमय प्रासादों से शोभायमान इन सब कूटों में से आठ कूटों पर ईशानेन्द्र के वाहनदेव रहते हैं।।२२६१।। नीलपर्वत से दक्षिण की ओर उपवनवेदी के दक्षिणपाश्र्व भाग में वेदी तोरणयुक्त दो कुण्ड स्थित हैं।।२२६२।। इन कुण्डों के दक्षिण तोरणद्वार से गंगानदी के सदृश पृथव-पृथव् रक्ता और रक्तोदा नामक दो नदियाँ निकली हैं।।२२६३।। रक्ता-रक्तोदा और विजयाद्र्ध पर्वत से कच्छादेश में सर्वत्र समान ये छह खण्ड निर्मित हुए हैं।।२२६४।। चौदह हजारप्रमाण परिवार नदियों से युक्त ये रक्ता-रक्तोदा नदियाँ नित्य सीतानदी में प्रवेश करती हैं।।२२६५।। १४०००। सीतानदी के उत्तर और विजयाद्र्धगिरि के दक्षिण भाग में रक्ता-रक्तोदा के मध्य आर्यखण्ड है।।२२६६।। यह आर्यखण्ड अनेक देशों से सहित, अठारह देशभाषाओं से संयुक्त, हाथी व अश्वादिकों से युक्त और नर-नारियों से मण्डित हुआ रमणीय है।।२२६७।।