अनेक प्रवक्ताओं के विचार का विषय या पदार्थ, उसके वाक्य सन्दर्भ का नाम कथा है | कथा तीन प्रकार की होती है – बाद, जल्प व वितण्डा | न्यायसार ग्रंथ के अनुसार कथा दो प्रकार की है वीतरागकथा और विजीगिशु कथा| वादी और प्रतिवादी में अपने पक्ष को स्थापित करने के लिए जीत-हार होने तक परस्पर में वचन प्रवृत्ति या चर्चा होती है वह विजिजीशु कथा कहलाती है और गुरु तथा शिष्य में अथवा रागद्वेष रहित विशेष विद्वानों में तत्त्व के निर्णय होने तक जो चर्चा चलती है वह वीतराग कथा है | इनमे विजिगीशु कथा को बाद कहते है| हार जीत की चर्चा को अवश्यबाद कहा जाता है- जैसे – स्वामी समन्तभ्रदाचार्य ने सभी एकान्तवादियो को बाद में जीत लिया |
मोक्ष पुरुषार्थ के उपयोगी होने से धर्म , अर्थ और काम का कथन करना भी कथा है इसके चार भेद है- आक्षेयीण संवेगनी और निर्वेद्नी | तीर्थंकर के वर्तन्त रूप प्रथमानुयोगादी चारों अनुयोग , इनका कथन और परमात की शंका दूर करना आक्षेपीणी कथा है | जिस कथा में जैन मत के सिद्धांतों का और परमत का निरूपण है उसको पिक्षेपीणी कथा कहते है | पुण्य के फल का कथन करने वाली कथा को संवेदनी कथा कहते है तथा शरीर भोग और जन्म परम्परा में विरिक्त उत्पन्न करने वाली कथा का निर्वेदिनी कथा नाम है | इसके अतिरिक्त चार विकथा भी है – स्त्रीकथा , राजकथा , चोरकथा एवं भक्तकथा |