भगवान नेमिनाथ ने तीर्थंकर से तृतीय भवपूर्व ‘सुप्रतिष्ठ’ मुनिराज की अवस्था में इन कनकावली आदि व्रतों का अनुष्ठान किया था। वैसे ही भगवान महावीर के जीव ने ‘नंदन मुनिराज’ के भव में इन्हीं व्रतों का अनुष्ठान किया था।
कनकावली व्रत विधि-
कनकावली व्रत में ४३४ उपवास और ८८ पारणाएँ होती हैं। इसका क्रम यह है कि एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, नौ बार तीन-तीन उपवास और उसके मध्य में एक-एक पारणा, पुन: एक से लेकर सोलह तक क्रमश: उपवास और मध्य में एक-एक पारणा, फिर चौंतीस बार तीन-तीन उपवास और मध्य में एक-एक पारणा, पुन: सोलह से लेकर एक तक क्रमश: उपवास और मध्य में एक-एक पारणा, पुन: नौ बार तीन-तीन उपवास और एक-एक पारणा तथा दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा इस प्रकार विधि होती है। कनकावली व्रत विधि यंत्र-उपवास-१,२,३,३,३,३,३,३,३,३,३,१,२,३,४,५,६,७,८,९,१०,११,१२ पारणा-१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१ उपवास-१३,१४,१५,१६,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३ पारणा-१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१ उपवास-३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,३,१६,१५,१४,१३,१२,११,१०,९ पारणा-१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१ उपवास-८,७,६,५,४,३,२,१,३,३,३,३,३,३,३,३,३,२,१ पारणा-१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१,१
इस व्रत में एक वर्ष पाँच मास और बारह दिन लगते हैं। लौकांतिक देवपद की प्राप्ति होना अथवा संसार का अंतकर मोक्ष प्राप्त करना इस व्रत का फल है। इस व्रत में चौबीस तीर्थंकर का मंत्र जपें एवं चौबीस तीर्थंकर पूजा करें।
मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम: अथवा ॐ ह्रीं वृषभादिवर्धमानान्तेभ्यो नम:।