अबला बाला करे पुकार हमें बचाओं हे करतार हमें बचाओ हे नर नार हमें बचाओ हे नर—नाार
एक समय वह था जब भारत देश में धर्म का ध्वज था। भारतीय नारी राष्ट्र और धर्म की शान थी, भारतीय नारी जगत माता, तीर्थंकर आदि महापुरुषों की जननी है। भारतीय संस्कृति में माँ के समान गुरुतर दायित्व से दूर भाग रही है। गर्भ धारण करने के साथ ही स्त्री की सृजनात्मक शक्ति विश्व के सामने उभरकर आती है। यह विधाता का वरदान है यदि वह इस वरदान को स्वयं नष्ट करवाती है अर्थात् गर्भपात करवाती है, तो वह अपने लिये पतन का मार्ग, विनाश का मार्ग एवं नर्क का द्वार प्रशस्त करती है। क्योंकि गर्भपात करवाने से जनसंख्या पर नियंत्रण करना, गर्भपात में हिंसा को नहीं स्वीकारना, गर्भस्थ शिशु में जीव का अस्तित्व ही नहीं स्वीकारना। ये भ्रांतियाँ सर्वथा गलत हैं। क्योंकि हमारे आगम साहित्य में आया है कि ‘‘ तुरंत के भू्रण में जीव है’’ इसमें पाँचों इंद्रियाँ, छहों पर्याप्तियाँ पूर्ण करने की क्षमता है। आज वैज्ञानिकों ने इतनी तरक्की की है वो आज हमको ‘अल्ट्रा साउण्ड टेकनिक’ के सहारे तीन–चार माह के शिशु के क्रियाकलाप दिखा भी सकते हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि तुरन्त के भ्रूण में जीव है। जीव के बगैर विकास संभव नहीं है, जबकि गर्भस्थ भ्रूण का विकास प्रतिपल होता है। इस प्रकार गर्भपात पूर्ण रूप से पंच इंद्रिय जीव की एक रक्षण विहीन शिशु की हत्या है। हमने एक कहावत सुनी है— ‘‘माता कभी कुमाता नहीं होती’’ किन्तु आज माँ ही सबसे व्रूर हत्यारिन हो गई है । माँ के द्वारा ममता का हनन, यह प्रत्येक व्यक्ति के दिल को दहला देने वाला कृत्य है।‘‘’
एक माँ बालक की हत्यारिन बन जाती है। साक्षात् दया की देवी चाण्डालिन बन जाती है।।’’
अनेक प्रश्नों से उलझा यह कार्य मंगल को अमंगल में बदलता है। जगत की जननी, जगत की पालनहारी, जगत की जन्मदात्री जानी जाने वाली माँ आज भ्रूण हत्या का कार्य बड़ी सहजतापूर्वक करवाती है। जिस देश में बालशोषण का निषेध है वह देश भू्रण हत्या में प्रथम है। लाखों की संख्या में भू्रण हत्या हो रही है। इसी भारत में जन्में वर्तमान शासन नायक महावीर स्वामी एक दिव्य संदेश दे गये हैं— ‘‘जियो और जीने दो’’ महात्मा गांधी ने कहा अहिंसा ही भारतीय संस्कृति का प्राण है। किन्तु आज इक्कीसवीं सदी में जाने वाली महिलाओं को क्या हो गया ? उन्होंने इन महान पुरुषों की वाणी को दर किनारा कर बड़ी सहजता से अपने अजन्में शिशु की हत्या करवाती है। यह अजन्में शिशु की हत्या डॉक्टर वैâसे करते हैं ? जिसके सुनने मात्र से दिल दहल जाता है। गर्भस्थ शिशु में संवेदनायें होती हैं जब उसको मारने की प्रक्रिया होती है तो वह औजार को अपने पास आता देख अपने निश्चित स्थान से कुछ पीछे हटता है। उसकी धड़कन बढ़ जाती है, करीब १४० से २०० तक हो जाती है । उस शिशु की गूंगी आंदोलन करना है। गर्भपात का सर्वथा विरोध करना है। क्योंकि समाज व देश के सामने ज्वलंत समस्या खड़ी हो गई है। किसी ने सच ही कहा है ‘‘नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है’’ आज यह कहावत चरितार्थ हो चुकी है, अत: इस समस्या को यदि उपजाने वाली नारी है तो उसे समाप्त करने का दायित्व भी नारी के ही हाथों में है। सर्दियाँ तो सदैव बदलती रहेंगी उनका सहारा लेकर स्वयं को आधुनिकता की बेड़ी में जकड़कर इस तरह के कुकृत्य में रोक लगाने की पहल में भी नारी को ही आगे आना होगा। हे नारी! आगे आओ और अपना समाज बचाओ। नारी तो जननी है यदि जननी ही नहीं रहेगी तो दुनिया ही समाप्त हो जायेगी अत: अपने मन की दया, पवित्रता को व्यर्थ मत गंवाओं और अपने हृदय के टुकड़ों का गला मत दबाओं