भरतक्षेत्र मे पोदनपुर के राजा विश्वभूति ब्राह्मण का ज्येष्ठ पुत्र कमठ था जिसने अपने छोटे भाई मरूभूति कि पत्नी के रूप सौंदर्य पर मुग्ध होकर उसके साथ व्यभिचार किया तब राजा ने उसे दण्ड देकर देश से निकाल दिया | अपमान से दुखी वह कमठ तापसी के आश्रम मे पत्थर की शिला को हथेली पर रखकर ऊँची करके तपश्चरण कर रहा था, मरूभूति भाई के मोह से उसे बुलाने गया किंतु कमठ ने क्रोध से वह शिला भाई पर पटक दी जिससे वह मर गया | दस भवो तक कमठ का जीव मरूभूति के जीव को दुख देता रहा अन्त मे भगवान पार्श्वनाथ की पर्याय मे उनके ऊपर भी संवर देव बन भयंकर उपसर्ग किया| भगवान तो उपसर्ग विजय कर जितेन्द्रिय हो गये परन्तु क्रोधी, पापी उस कमठ ने अनेक गतियो ने नाना प्रकार के दुख उठाते हुए चतुर्गति भ्रमण किया |