जीव के शुभ – अशुभ आदि परिणामों की करण संज्ञा है | सम्यक्त्व व चारित्र की प्राप्ति मे सर्वत्र उत्तरोत्तर तरतमता लिए तीन प्रकार की परिणाम दर्शाये गये है – अध:करण, अपूर्वकरण, अनिव्रत्तिकरण |
इन तीनों मे उत्तरोत्तर विशुद्धि की वृद्धि के कारण कर्मो के बंध मे हानि तथा पूर्व सत्ता मे स्थित कर्मो की निर्जरा आदि मे भी विशेषता होना स्वाभाविक है | इनके अतिरिक्त कर्म सिद्धांत मे बंध , उदय, सत्त्व आदि जो दस मूल अधिकार है उनको भी दस करण कहते है वह दस करण इस प्रकार है –
१. बंध
२. उत्कर्षण
३. संक्रमण
४. अपकर्षण
५. उदीरणा
६. सत्त्व
७. उदय
८. उपशम
९. निधत्ति और
१०. नि:काचना