शारीरिक , मानसिक और स्वाभाविक ऐसी असह दुखराशि प्राणियों को सता रही है यह देखकर “अहा! इन प्राणियों ने मिथ्यादर्शन, अविरित, कषाय और अशुभ योग से जो उत्पन्न किया था , वह कर्म उदय मे आकर इन जीवों को दुःख दे रहा है | ये कर्मवश होकर दुःख भोग रहें है इनके दुःख से दुखित होना करुणा है |
इनका दूसरा नाम दया है | सर्व प्राणियों के ऊपर उनका दुःख देखकर अन्त:करण आर्द्र होना दया का लक्षण है | करुणा जीव का स्वभाव है | करुणा धर्म का मूल है जिन भगवान के उपदेश से दयालुतारूप अमृत से परिपूर्ण जिन श्रावको के ह्रदय मे प्राणीदया आविर्भूत नहीं होती है उनके धर्म नहीं होता , प्राणीदया धर्मरुपी वृक्ष की जड़ है, व्रतों मे मुख्य है, संपत्तियो का स्थान है और गुणों का भण्डार है | करुणा सम्यक्त्व का चिन्ह है |