ॐ जय जय कर्मजयी, स्वामी जय जय कर्मजयी।
ध्यान अग्नि से कर्म दहन कर, बन गए मृत्युजयी ।।ॐ जय.।।
मानव तन अनमोल रतन पा, मुनि पद जो धरते—स्वामी।
त्याग तपस्या द्वारा, शिवपद को वरते।।।।ॐ जय.।।१।।
घाति कर्म को क्षय कर, केवलज्ञान मिले ……….स्वामी।
पा अरिहन्त अवस्था, दिव्यध्वनी खिरे ।।ॐ जय.।।२।।
शेष अघाति नशाकर, सिद्धशिला पाते………स्वामी।
काल अनन्त बिताकर, फिर न यहाँ आते ।।ॐ जय.।।३।।
इन्द्रियविजयी नर ही, कर्मजयी बनते ………स्वामी।
तभी पंचपरमेष्ठी, परम पूज्य बनते ।।ॐ जय.।।४।।
प्रभु आरति से हम भी, ऐसी शक्ति लहें……..स्वामी।
शीघ्र चंदनामती मुक्ति के, पथ की युक्ति गहें ।।ॐ जय.।।५।।