कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन का परिचय-नवयुवकों के आदर्श कर्मयोगी ब्रह्मचारी भाई रवीन्द्र जी माता मोहिनी व पिता श्री छोटेलाल जी की नवमीं संतान हैं। इनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी (श्रुतपंचमी) सन् १९५० में हुआ है। पिता श्री छोटेलाल जी एवं माता मोहिनी ने अपने चार पुत्रों में से एकमात्र रवीन्द्र जी को लखनऊ यूनिवर्सिटी से बी.ए. तक अध्ययन कराया था। स्नातक होने के बाद भी संसार के मोहचक्र में फंसना इन्होंने स्वीकार नहीं किया।भोगों को भोगने के बाद उससे विरक्ति होना तो प्रायः देखा जाता है परन्तु जब पूर्ण यौवन और भोगोपभोग के समस्त साधन उपस्थित हों उस समय उन सबका परित्याग कर त्याग के कठिन मार्ग पर स्वयं को समर्पित कर देने वाले विरले ही लोग होते हैं। उसी शृंखला की एक कड़ी ब्र.रवीन्द्र जी भी हैं जिन्होंने सन् १९६८ से पूज्य माताजी द्वारा प्रेरित किये जाने पर अन्ततोगत्वा सन् १९७२ में पूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज से नागौर (राज.) में आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया। उसके बाद से जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में ब्र. मोतीचंद जी के साथ संस्थान का सम्पूर्ण दायित्व संभालते हुए सन् १९८७ में पूज्य माताजी के पास सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर आप गृहविरत हो गये।
जम्बूद्वीप स्थल आपकी विशेष कर्मभूमि है यहीं से अपनी धार्मिक क्रियाओं का पालन करते हुए आप संस्था संचालन, सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका का सम्पादन, पूज्य माताजी द्वारा लिखित सैकड़ों ग्रंथों का सम्पादन आदि कर रहे हैंं। आप जहाँ श्री दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, श्री अयोध्या दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, श्री १००८ माँगीतुंगी बड़ी मूर्ति निर्माण कमेटी, तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली प्रयाग तीर्थक्षेत्र कमेटी, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर दि. जैन समिति आदि अनेकों तीर्थों के अध्यक्ष हैं वहीं आप अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद के भी अध्यक्ष पद का भार संभाल रहे हैं। इतने अधिक कार्यों को करते हुए भी आपकी सबसे बड़ी विशेषता रही है कि कभी भी आपके चेहरे पर शिथिलता या क्रोध के भाव नहीं दिखते। हमेशा हंसता-मुस्कराता, मधुरता बिखेरता आपका व्यक्तित्व आइने की तरह स्वच्छ है। तभी तो अपनी ओजस्वी वाणी, स्पष्टवादिता, कर्मठता, सहजता आदि गुणों के द्वारा भाई रवीन्द्र जी से आज सारा देश परिचित हो चुका है। पूज्य माताजी से प्राप्त संस्कारों के अनुसार संघर्ष झेलकर भी सत्य को उजागर करना आपकी पहचान बन गयी है। जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण धर्म, धर्मायतन एवं गुरुओं की सेवा में व्यतीत हुआ हो, समाज सेवा में व्यतीत हुआ, हो ऐसे भाई जी के नाम से जाना जाने वाला व्यक्तित्व अखिल भारतवर्षीय शास्त्री परिषद द्वारा सन् १९९२ में ‘कर्मयोगी’ की उपाधि से विभूषित किया गया जो कि नवयुवकों के लिए ‘कर्मयोगी भाई जी’ के रूप में सचमुच अनुकरणीय है।
सन् १९९६ में मांगीतुंगी (महा.) में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के सुअवसर पर वीर सेवा दल की ओर से आपके कार्यकलापोें का मूल्यांकन करते हुए ‘धर्मसंरक्षणाचार्य’ की उपाधि से विभूषित किया गया। आप विद्वत्ता के साथ-साथ अपूर्व कार्यप्रणाली की क्षमता के धनी हैं। पूज्य माताजी के द्वारा संकल्पित प्रत्येक क्षेत्र में साहित्यिक, निर्माणात्मक, सृजनात्मक कार्यों को मूर्तरूप प्रदान करने वाले भाई श्री रवीन्द्र जी ने सन् २००० में न्यूयार्क-अमेरिका (यू.एन.ओ.) में आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन में जैन धर्माचार्य के रूप में सम्मिलित होकर जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया और आज भी जैनधर्म के प्रचार-प्रसार हेतु सतत संलग्न हैं। वास्तव में देखा जाये तो योग्य व्यक्ति की पहचान उसके कर्मठ व्यक्तित्व से ही होती है। कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जी जैन समाज के क्षितिज पर चमकते अनोखे सितारे हैं। आपके दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन के लिए मंगल कामना है।