अज्ञानी साधक बाल तप के द्वारा लाखों—करोड़ों जन्मों में जितने कर्म खपाता है, उतने कर्म मन, वचन, काया को संयत रखने वाला ज्ञानी साधक एक श्वास मात्र में खपा देता है। भवकोडी—संचियं कम्मं, तवसा निज्जरिज्जइ।
साधक करोड़ों भवों के संचित कर्मों को तपस्या के द्वारा क्षीण कर देता है। अप्पाणं जो णिंदइ, गुणवंताणं करेइ बहुमाणं।
जो मनुष्य अपनी निंदा करता है और गुणवन्तों की प्रशंसा करता है, उसके कर्म—निर्जरा होती है।