इक वृद्धाश्रम से आए उन दम्पत्ति का क्रन्दन सुन लो।।
एक कहानी….।।२।।
बोले वे माताजी! हम कोठी बंगले में रहते थे।
एक पुत्र के बिना किन्तु हम दुखी सदा ही रहते थे।।
एक अनाथालय से फिर ले आए हम गोदी सुत को।।
एक कहानी….।।३।।
बड़े प्यार से पाला पोसा और पढ़ाया शादी की।
आई बहू तो कहने लगी अब नहीं जरूरत है इनकी।।
बालक भी उसके रंग में रंग गया सुनो भाई बहनों।।
एक कहानी….।।४।।
हमको देखा बहुत दुखी तो कहने लगा मम्मी पापा।
चलो तुम्हें वृद्धाश्रम में पहुँचा दूँ मैं मम्मी पापा।।
रोये बहुत लगा छाती से उस बच्चे को हम दोनों।।
एक कहानी….।।५।।
लेकिन उसे दया नहिं आई, बोला वहीं आराम करो।
खर्चा पानी जो होगा हम देंगे तुम चिंता न करो।।
मिलने भी आऊंगा वहीं प्यारे मम्मी पापा सुन लो।।
एक कहानी….।।६।।
प्यारे भाई-बहनों! उस दम्पत्ति के मुख से यह दर्द भरी कहानी सुनकर मेरी भी आँखें सजल हो गई और एक क्षण को मन में आया-कि ऐसे कलियुग में हमने जन्म क्यों लिया है ? जब सन्तानें अपने माता-पिता के प्रति, शिष्य अपने गुरु के प्रति, लोग अपने देश के प्रति कर्तव्य निर्वाह नहीं करना चाहते हैं। मैंने उनकी आगे की जो दर्दनाक कहानी सुनी, वह तो अत्यन्त भावविह्वलता की प्रतीक रही, आप भी सुनें उस आगे की कहानी को-
तर्ज-ऐ मेरे वतन के लोगों……….
सोने की चिड़िया भारत, की सुन लो करुण कहानी।
यहाँ संतानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।टेक.।।
वृद्धाश्रम ले गया बेटा, जबरन माता व पिता को।
वहाँ मिले प्रबंधक देखो, निज गले लगाया उनको।।
बेटे ने पूछा यह क्या, क्या इनमें दिखी निशानी।
यहाँ सन्तानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।।।१।।
तब बोला वही प्रबंधक, ये मेरे दोस्त पुराने।
इक दिन आये थे तुमको लेने मेरे ही यहाँ ये।।
तू आज इन्हें लाया है, बनी कलियुग की ये निशानी।
यहाँ संतानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।२।।
यह सुनकर बेटा रोया, पर उसकी मजबूरी थी।
अपनी पत्नी के कारण, उसने बनाई दूरी थी।।
मेरा घर बन गया उसका, है स्वार्थ भरी जिन्दगानी।
यहाँ सन्तानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।३।।
देखो! भारत के भाई-बहनों यह कलियुग आया।
जब बच्चों ने पितु माँ को, वृद्धाश्रम में पहुँचाया।।
लेकिन हैं आज भी कितने, अच्छे पुत्रों की निशानी।
यहाँ संतानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।४।।
इक आशा साहनी माँ का, प्रकरण भी सामने आया।
बेटा विदेश रहता था, माँ ने यहाँ प्राण गंवाया।।
पड़ी रही लाश कई दिन तक, कुछ बची न उसकी निशानी।
यहाँ सन्तानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।५।।
सोचो! तुमको भी इक दिन, माँ बाप किसी के है बनना।
इसलिए आज तुम अपने माँ बाप की सेवा करना।।
‘‘चन्दनामती’’ मानव के कर्तव्य की है ये निशानी।
यहाँ सन्तानों की खातिर, करें मात-पिता कुर्बानी।।सोने की….।।६।।