(चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक)
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एक आर्यखण्ड और पांच म्लेच्छ खण्ड हैं इन छहों खण्डों पर विजय प्राप्त कर वह ‘‘चक्रवर्ती ’’ संज्ञा को प्राप्त करते हैं इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में भी व्यवस्था हैं । पूर्व जन्म में किये गये तप के बल से चक्रवर्ती की आयुधशालाओं में भुवन को विस्मित करने वाला चक्ररत्न उत्पन्न होता है तब अतिशय हर्ष को प्राप्त चक्रवर्ती जिनेन्द्र भगवान की पूजा करके विजय के निमित्त पूर्व दिशा में प्रयाण करते है। क्रम से दक्षिण भरत क्षेत्र के दो खण्डों को सिद्ध कर पुन: उत्तर भरत में सम्पूर्ण भूमिगोचरी और विद्याधरों को वश में कर लेते है यह १२ होते हैं प्रत्येक चक्रवर्ती के ९६ हजार रानियां आदि अनेकों वैभव होते है । यह चौदह रत्नों और नवनिधियों के स्वामी होते हैं । उन चौदह रत्नों में से सात जीवरत्न और सात निर्जीव रत्न है निर्जीव रत्नों में छत्र,असि,दण्ड,चक्र,चिंतामणि और चर्म के साथ -२ काकिणी भी एक रत्न है ।