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कायक्लेश :!
November 21, 2017
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[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष]] ==
कायक्लेश :
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सुखेन भावितं ज्ञाने, दु:खे जाते विनश्यति। तस्मात् यथाबलं योगी, आत्मानं दु:खै: भावयेत्।।
—समणसुत्त : ४५३
सुखपूर्वक प्राप्त किया हुआ ज्ञान दु:ख के आने पर नष्ट हो जाता है। अत: योगी को अपनी शक्ति के अनुसार दु:खों के द्वारा अर्थात् कायक्लेशपूर्वक आत्म-चिन्तन करना चाहिए।
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