सौधर्म-ईशान स्वर्गों के देव, देवांगनाओं के साथ शरीर से काम सेवन करते हैंं। सानत्कुमार युगल के देव, देवियों के स्पर्श से, ब्रह्म आदि चार स्वर्गों के देव देवियों के रूपावलोकन से, शुक्र आदि चार स्वर्गों के देव देवांगनाओं के गीतादि सुनकर, आनत आदि चार स्वर्गों के देव अपनी-अपनी देवांगनाओं के मन में स्मरण मात्र से तृप्त हो जाते हैं। इन देव देवियों का पारस्परिक दांपत्य प्रेम इसी प्रकार होता है। आगे ग्रैवेयक आदि में देवियाँ ही नहीं हैं अत: वहाँ स्त्रीजन्य सुखों की बात ही नहीं है। वे अहमिन्द्र इन देवों की अपेक्षा अनन्त गुणा सुखी हैं।