इस धातकीखंड द्वीप को चारों तरफ से वेष्टित करके ८ लाख योजन विस्तृत मंडलाकार रूप से कालोदधि नामक समुद्र है। टांकी से उकेरे हुये के सामन आकार वाला यह समुद्र सर्वत्र १००० योजन गहरा, चित्रापृथ्वी के उपरिम तलभाग के सदृश-समतल और पातालों से रहित है। इस समुद्र के भीतर दिशाओं, विदिशाओं अंतरदिशाओं और हिमवन् शिखरी विजयार्ध के किनारों पर पूर्वोक्त वर्णन से सहित ४८ अंतर्द्वीप हैं। ये प्रत्येक द्वीप, तट वेदी, तोरण पुष्करिणी आदि से रमणीय हैं उनमें रहने वाले मनुष्य कुभोगभूमिज कहलाते हैं और विकृत आकार के धारक हैं। लवण समुद्र की ४८ एवं कालोदधि समुद्र की ४८ ऐसे (४८±४८·९६) कुल छियानवें कुभोगभूमि हैं। कालोदधि के द्वीपों का अवगाह जल के भीतर १००० योजन मात्र है। इन द्वीपों में जो कुमानुष रहते हैं वे युगल रूप से उत्पन्न होकर ४९ दिन में नवीन यौवन से संपन्न हो जाते हैं।
इनके शरीर की ऊँचाई १ कोस प्रमाण है, आयु १ पल्य प्रमाण है, ये आंवले के बराबर भोजन एक दिन के अंतर से ग्रहण करते हैं। इनकी सारी व्यवस्था लवण समुद्र के कुमानुषों के समान है। इस कालोदधि की बाह्य परिधि ९१७०६०५ योजन है। इसी समुद्र के भीतर नदी प्रवेशस्थान में जलचर जीव १८ योजन लम्बे ९ योजन विस्तृत एवं ४-१/२ योजन मोटे हैं। समुद्र के मध्य में स्थित मत्स्यों की लंबाई ३६ योजन, चौड़ाई १८ योजन एवं मोटाई ९ योजन है। शेषस्थानों में मगर, शिंशुमार, कछुआ, मेंढक आदि जलचर जीव की अवगाहना से युक्त हैं। इसकी बाह्यजगती का विस्तार जम्बूद्वीप जगतीवत् है एवं उसके अभ्यंतर भाग में शिलापट्ट और बाह्यभाग में वनखंड हैं।