जीवों और पुद्गलों में नित्य होने वाले अनेक प्रकार के परिवर्तन या पर्यायें मुख्यत: कालद्रव्य के आधार से होती हैं—उनके परिणमन में कालद्रव्य निमित्त होता है। (इसी को आगम में निश्चयकाल कहा गया है।)
समय आवलि उच्छवास: प्राणा: स्तोकाश्च आदिका भेदा:।
व्यवहारकालनामान: निर्दिष्टा वीतरागै:।
—समणसुत्त : ६३९
वीतराग देव ने बताया है कि व्यवहार—काल, समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण, स्तोक आदि रूपात्मक हैं।