संसार मे धन, सुख, वैभव, यश- कीर्ति की प्राप्ति पूर्वोपार्जित कर्म के प्रभाव से मिलती है उत्तम आदि पात्रों को चारों प्रकार के दानादि से इसकी प्राप्ति होती है ।
कीर्ति दो प्रकार की है – यश: कीर्ति और अयश्कीर्ति । जिस कर्म के उदय से जीव को सदैव यश की प्राप्ति हो, सर्वत्र प्रशंसा हो वह यश:कीर्ति है तथा जिस कर्म के उदय से जीव को अच्छे कार्य करने के बाद भी प्रशंसा के स्थान पर अपयश की प्राप्ति हो वह अयश्कीर्ति है । यह नाम कर्म के ९३ भेदो में से एक है । ज्ञानावरणादि आठ कर्मों में नाम कर्म एक है ।