अथ कुण्डलरुचकाचलयोरुदयादित्रयमाह—
कुंडलगो दसगुणिओ पणसदरिसहस्स तुंगओ रुजगे।
चउरासीदिसहस्सा सव्वत्थुभयं सुवण्णमयं१।।९४३।।
कुण्डलगौ दशगुणितौ पञ्चसप्ततिसहस्रं तुङ्गो रुचके।
चतुरशीतिसहस्राणि सर्वत्रोभयौ सुवर्णमयौ।।९४३।।
कुंडल।
मानुषोत्तरभूमुखव्यासात् कुण्डलपर्वतस्य भूमुखव्यासौ दशगुणितौ भू १०२२०
मुख ४२४० तत्तुङ्गस्तु पञ्चसप्ततिसहस्रयोजनानि ७५००० रुचके
सर्वत्रउदये व्यासे च चतुरशीतिसहस्रयोजनानि ८४०००।
उभयौ कुण्डलरुचकौ सुवर्णमयौ स्यातां।।९४३।।
साम्प्रतं कुण्डलस्योपरिमकूटनि गाथात्रयेणाह—
चउ चउ कूडा पडिदिसमिह कुंडलपव्वदस्स सिहरिम्मि।
ताणब्भंतरदिग्गय चत्तारि जिणिंदकूडाणि।।९४४।।
वज्जं तप्पह कणयं कणयप्पह रजदवूड रजदाहं।
सुमहप्पह अंवंकप्पह मणिवूडं च मणिपहयं।।९४५।।
रुजगरुजगाह हिमवं मंदरमिह चारि सिद्धवूडाणि।
अत्थंति सेसि वूडे वूडक्खसुरा कदावासा।।९४६।।
चत्वारि चत्वारि वूकूटनि प्रतिदिशमिह कुण्डलपर्वतस्य शिखरे।
तेषामभ्यन्तरदिग्गतानि चत्वारि जिनेन्द्रकूटनि।।९४४।।
वङ्कां तत्प्रभं कनकं कनकप्रभं रजतवूकूट रजताभं।
सुमहप्रभं अज्र्मज्र्प्रभं मणिकूट च मणिप्रभं।।९४५।।
रुचकरुचकाभं हिमवत् मन्दरमिह चत्वारि सिद्धवूकूटनि।
आसते शेषेषु कूटषु वूकूटख्यसुराः कृतावासाः।।९४६।।
चउ।
इह कुण्डलपर्वतस्य शिखरे प्रतिदिशं चत्वारि ४ चत्वारि ४ कूटनि।
तेषामभ्यन्तरदिग्गतानि चत्वारि ४ जिनेन्द्रवूकूटनि।।९४४।।
वज्जं।
वङ्कां वङ्काप्रभं कनकं कनकप्रभं रजतकूट रजताभ
सुप्रभं महाप्रभं अज्र्ं अज्र्प्रभं मणिवूकूट मणिप्रभं।।९४५।।
रुजग।
रुचकं रुचकाभं हिमवत् मन्दरं ४ एभ्यः कूटभ्यः
सकाशादन्यानि इह चत्वारि सिद्धवूकूटनि सन्ति।
शेषकूटषु १६ वूकूटख्याः सुराः कृतावासा भूत्वा आसते १६।।९४६।।
अब कुण्डलगिरि और रुचकगिरि के उदयादि तीनों कहते हैं—
गाथार्थ—कुण्डलगिरि का भूव्यास और मुख व्यास मानुषोत्तर के भूमुख व्यास के दशगुणा है और उँचाई पचहत्तर हजार योजन है तथा रुचकगिरि सर्वत्र चौरासी हजार योजन प्रमाण है। ये दोनों पर्वत स्वर्णमय हैं।।९४३।।
विशेषार्थ—मानुषोत्तर पर्वत के भूमुख व्यास से कुण्डलगिरि का भू व्यास, मुख व्यास दशगुणा है अर्थात् कुण्डलगिरि का भूव्यास १०२२० योजन, मुखव्यास ४२४० योजन और उँâचाई ७५००० योजन है तथा रुचकगिरि का उदय, भू व्यास और मुख व्यास ये तीनों ८४००० योजन प्रमाण हैं। दोनों पर्वत स्वर्णमय हैं। अब कुण्डलगिरि के ऊपर स्थित वूकूट को तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ—इस कुण्डलगिरि के शिखर पर एक-एक दिशा में चार-चार वूकूट। इनके अभ्यन्तर की ओर चारों दिशाओं में (एक-एक) चार कूटकूटन्द्र भगवान सम्बन्धी हैं। उनके नाम—१ वङ्का, २ वङ्काप्रभ, ३ कनक, ४ कनकप्रभ, ५ रजतकूट,कूटजताभ, ७ सुप्रभ, ८ महाप्रभ, ९ अज्र्, १० अज्र्प्रभ, ११ मणिकूट,कूटमणिप्रभ, १३ रुचक, १४ रुचकाभ, १५ हिमवत और मन्दर ये सोलह कूट कूट अन्य चार सिद्धकूट कूटजिनमें भगवान के चैत्यालय हैं। अवशेष १६ कूटकूट अपने-अपने वूकूटट नाम वाले देव निवास करते हैं।।९४४, ९४५,९४६।।
विशेषार्थ—इस कुण्डलगिरि के शिखर पर पूर्व दिशा में वङ्का, वङ्काप्रभ, कनक और कनकप्रभ ये चार एवं एक सिद्धकूटटकार कुल पाँच कूटसी प्रकार दक्षिण में रजतकूटकूटटभ, सुप्रभ, महाप्रभ और एक सिद्धकूटकूटटम में अज्र्, अज्र्प्रभ, मणिकूटकूटटभ और एक सिद्धकूट कूटटर में रुचक, रुचकाभ, हिमवत्, मन्दर और एक सिद्धकूट हैंकूटटप्रकार कुल कूट कूटकूटजिनमें ४ सिद्धकूट कूटत्यालय हैं और अवशेष सोलह वूकूट कूकूटने वूकूटकूटदेव निवास करते हैं।