जो मन के भीतर तो रागद्वेष धारण करें और बाहर धन,कपड़ा,आदि से स्नेह करें और अपने को बड़ा मानकर खोटे भेष भी धारण करें वे कुगुरू संसार समुद्र से तिरने के लिए पत्थर की नाव के समान है अर्थात् संसार समुद्र से पार होने प्राणी को इन देव पर श्रद्धान नहीं करना चाहिए जो ऐसा करते हैं वह समुद्र को पार करने के लिए पत्थर से निर्मित नाव पर बैठकर समुद्र पार करना चाहते है ।
खोटे गुरू, खोटे देव और खोटे धर्म की जो सेवा करना है सो मिथ्यादर्शन है यह प्राणी को चतुर्गति भ्रमण करवाता है । संसार की चारों गतियों में घुमाने वाले दु:खदायी ऐसे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र है । ये तीनों दो भेदरूप है – एक अगृहीत दूसरा गृहीत । जो पहले से चला आया हो वह अगृहीत तथा जो इस भव में ग्रहण किया हो वह गृहीत है ।