‘‘मन, वचन, काय की वक्रता’’
मायाचारी,वक्रता का दूसरा नाम कुटिलता है। तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ में आचार्य उमास्वामी ने कहा है कि – ‘‘मायातैर्यग्योनस्य’’ अर्थात् मायाचारी करने से तिर्यंच आयु का आस्रव होता है । मायाचारी का कोई भी विश्वास नहीं करता है, वह इस भव तथा परभव में भी सदा दुखी रहता है उससे विपरीत जो मायाचारी नहीं रखते, सरलभाव रखते हैं आर्जव गुण का पालन करते हैं वह भव का क्षय तक कर लेते हैं। मन,वचन काय की सरलता का नाम आर्जव है अर्थात् – जैसा अपने मन में विचार किया जावे वैसा ही दूसरों से कहा जाये औ वैसा ही कार्य किया जाए वह आर्जव है इसके विपरीत ‘मुंह मे राम बगल में छुरी’ की कहावत को सिद्ध करने वाले व्यक्ति कुटिल वृत्ति है मायाचारी है । ऋजुगति से जीव मोक्षगमन करता है और कुटिलता से चारो गतियों में अर्थात् वक्रगति में संसार में भ्रमण करता है ।
‘‘योगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्न:’’ – मन वचन काय की कुटिलता से अशुभ नामकर्म का आस्रव होता है । ज्ञानार्णव ग्रन्थ में श्री शुभचन्द्राचार्य कहते है कि वीतराग सर्वज्ञ भगवान ने मुक्ति को सरल कहा है उसमें मायावी जनों के स्थित रहने की योग्यता स्वप्न में भी नहीं हैं ।