(भगवान महावीर की जन्मस्थली-पूजा एवं भजनों के अन्तर्गत )
-श्रीमती उषा पाटनी, इंदौर
(सहसम्पादिका-ऋषभदेशना)
नृप सिद्धार्थ सूर्य के घर जनमें चन्द्र सलोने, त्रिशला की ममता के कर में चेतन बने खिलौने।
कुण्डलपुर का जनमानस आनंदित हो हर्षाया, नंद्यावर्त महल में जब महावीर ने जनम है पाया।।
यह निर्विवाद सत्य है कि इतिहास के परिप्रेक्ष्य में ही वर्तमान को देखा जा सकता है। चाहे लेख हो या पूजा-पाठ, स्तुति हो या आरती, जब भी कोई रचना होती है, मनगढ़ंत नहीं होती है, अपितु प्रासंगिक होती है जिसे हम जिनवाणी के रूप में श्रद्धानवत होकर स्वीकार करते हैं। भगवान महावीर का जन्म आज से २६०० वर्ष पूर्व कुण्डलपुर में हुआ था यह सर्वविदित है। कुण्डलपुर जैन धर्मावलम्बियों की मान्यतानुसार वह स्थान है जो कि बिहार शरीफ से १३ किमी. एवं राजगृही से १६ किमी. दूर है। नालंदा से ३ किमी. दूर बड़गाँव के बाहर एक जिनमंदिर के क्षेत्र को भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर के नाम से जाना जाता है जो कि सदियों से हमारी आस्था का केन्द्र है। तीर्थराज सम्मेदशिखरजी की यात्रा करने वाले शत-प्रतिशत धर्मावलम्बी मार्ग में भगवानमहावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर के दर्शन करने अवश्य ही जाते हैं। वहाँ एक परकोटे में जिनमंदिर में भगवान महावीर की मूलनायक प्रतिमा है तथा मंदिर के बाहर चबूतरे पर एक छत्री बनी है जिसमें भगवान महावीर के चरण चिन्ह हैं। यह दुर्भाग्य है कि हमारे कई तीर्थ हमारी अवहेलना की वजह से आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ गये हैं और हमारी जागरूकता के अभाव में उन पर अन्य धर्मावलम्बियों का अधिकार होता जा रहा है। वर्तमान में आर्यिका गणिनीप्रमुख १०५ श्री ज्ञानमती माताजी के अथक प्रयासों से भगवान महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर (नालंदा) का विकास कार्य तीव्र गति से चल रहा है। तीर्थ विकास के प्रथम चरण में कीर्ति स्तंभ की सुन्दरतम रचना की गई है तथा भगवान महावीर की सात हाथ अवगाहना वाली प्रतिमा को स्थापित करके नंद्यावर्त महल नाम से अति सुन्दर तीर्थ का निर्माण हुआ है। इस तीर्थस्थल पर सामाजिक सहायता व पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी के ससंघ प्रयासों से नंद्यावर्त महल की प्रतिकृति निर्मित हुई है जहाँ पर भगवान महावीर का जीवनदर्शन अतिआकर्षक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से प्रदर्शित किया जा रहा है। प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने सभी को आह्वान करते हुए लिखा है-
चलो कुण्डलपुर चलना है, वीर का वन्दन करना है, महावीर की जन्मभूमि को, विकसित करना है।
आज भारत वर्ष के समग्र जैन समाज का दायित्व है कि हमारे प्राचीनतम तीर्थक्षेत्रों के संरक्षण एवं संवद्र्धन में सक्रिय भूमिका अदा करें और हमारे परम श्रद्धेय गुरुजनों के सानिध्य में रहकर नवीन तीर्थ निर्माण के स्थान पर प्राचीन तीर्थ विकास में सहयोग करें। जब हम हमारे प्राचीनतम ग्रंथों-जयधवला, धवला, तिलोयपण्णत्ति, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण आदि का पाठ करते हैं तो स्पष्ट रूप से यही स्वीकारोक्ति होती है कि जिस कुण्डलपुर पर हम आज श्रद्धावनत हैं वही वास्तविक रूप से भगवान महावीर की जन्मभूमि है। हम सभी जब भगवान महावीर की पूजाकरते हैं तो उनके जन्मकल्याणक का अर्घ चढ़ाते समय यही कहते हैं-
जनम चैत सुत तेरस के दिन कुण्डलपुर कन वरना, सुरगिरि,
सुरगुरू पूज रचायो, मैं पूजों भव हरना। नाथ मोहे राखो हो शरणा।
यही नहीं, सांध्यकाल में जब मंदिरों में आरती के स्वर गुंजायमान होते हैं तो भी हम सुनते हैं- ओम् जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो। कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो। ओम् जय……… आज हमारा क्या कत्र्तव्य है? यह जानने के लिए हमें श्री ताराचंद्र जैन शास्त्री द्वारा रचित ‘जीवन झांकी-तीर्थंकर महावीर’ के प्रथम पद्य का अवलोकन कर तदनुरूप कार्य करना होगा, जिसमें कहा गया है-
आओ दिखायें जीवन झांकी महावीर भगवान की,
सिद्धारथ के राजदुलारे, त्रिशला माँ के प्राण की।
क्षत्रिय नाथवंश प्राची के, दिनकर श्री महावीर,
कुण्डलपुर में जन्म लिया था, जन्मजात महावीर थे।
चैत्र शुक्ल तेरस के दिन की शोभा असीम निराली थी,
राजमहल, पुरजन, परिजन के मुख पर छाई लाली थी।
रत्नपुष्प की वर्षा हुई थी, वृद्धि हुई धन धान की,
आओ दिखायें जीवन झांकी महावीर भगवान की,
‘भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ’में लेखक पं. बलभद्र जैन ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है- ‘कुण्डलपुर बिहार प्रान्त के नालंदा जिले में स्थित है। यहाँ का पोस्ट आफिस भी नालंदा है और निकट का रेलवे स्टेशन भी नालंदा है। यहाँ भगवान महावीर के गर्भ, जन्म और तप कल्याणक हुए थे, इस प्रकार की मान्यता शताब्दियों से चली आ रही है। यहाँ पर एक शिखरबंद मंदिर है जिसमें भगवान महावीर की श्वेत वर्ण की साढ़े चार पुâट अवगाहना वाली भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) को गलत सिद्ध करने का प्रयास कुछ लोगों की चाल है, जिन्होंने तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि पर प्रश्नचिन्ह लगाकर हमारी आस्था एवं विश्वास पर गहरी चोट की है। हमारा कर्तव्य है कि हम इसके दूरगामी परिणामों पर विचार करके अथाह मात्रा में यत्र-तत्र बिखरी पुरातत्व सामग्री का दिगम्बर जैन आगम के परिप्रेक्ष्य में विद्वानों के विचारों का अध्ययन करें तथा सत्य को उद्घाटित करें। हमें पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के प्रयासों पर कदम दर कदम सहयोग देना होगा तथा प्राण-प्रण से तीर्थ रक्षा व संवद्र्धन के प्रयासों में जुट जाना होगा। तभी कुण्डलपुर ही नहीं, वरन् हमारे समस्त तीर्थ क्षेत्र अपनी मूल श्रद्धा के केन्द्र रह पाएंगे। अंत में मैं यही कहूँगी
जागो जागो सब जैनी जन, करो प्रयास सदा भरपूर।
सत्य प्रमाणित करना होगा, वीर जन्मस्थली है कुण्डलपुर।।