भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) के प्रति समस्त जैन समाज का वर्षों से अखण्ड श्रद्धान बना हुआ है। श्रद्धालुगण भक्तिभाव के साथ सम्मेदशिखर आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा के साथ कुण्डलपुर की यात्रा भी भगवान महावीर की जन्मभूमि के रूप में आकर करते हैं। हमारे दिगम्बर जैन शास्त्रों में, पूजाओं में और आरती आदि में प्राचीन समय से भगवान महावीर और उनकी जन्मस्थली कुण्डलपुर के गुण गाये जाते रहे हैं। इस तरह आज भी जनमानस के हृदय में कुण्डलपुर के प्रति सच्चा श्रद्धान अखण्डरूप से भरा हुआ है। वर्षों से यह तीर्थ हमारे देश के तीर्थरक्षकों द्वारा उपेक्षित रहा। इसके विकास और गौरव के अनुसार इसकी प्रतिष्ठा के लिए कोई कार्य नहीं किया गया। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जो कि ऐसे उपेक्षित तीर्थों के विकास हेतु आजीवन कार्य करती रहीं-उनकी दृष्टि इस ओर गई। पूज्य माताजी ने अनेक तीर्थों का विकास कराया। उन्होंने कहीं अपने नाम से कोई ‘‘ज्ञानमती गिरि’’ नहीं बनवाया अपितु आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की जन्मभूमि अयोध्या, आहारभूमि हस्तिनापुर, तपोभूमि प्रयाग जैसे स्थानों पर मंदिरादि का विकास कर उन्हें वास्तविक अर्थों में तीर्थ स्थान/दर्शनीय स्थान बनवाया। आज हस्तिनापुर का जम्बूद्वीप व प्रयाग की तपस्थली जैनों के लिए यात्राधाम और जैनेतर भाइयों के लिए पर्यटन के केन्द्र बन गये हैं। जहाँ जैनेतर लोग भी जैन भूगोल को समझते हैं और भगवान ऋषभदेव के विषय में जानकारी पाते हैं। इसी श्रृंंखला में उन्होंने अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर को सही अर्थोें में तीर्थक्षेत्र के रूप में विकसित करने का भगीरथ कार्य किया है। आज वहाँ पर नवनिर्मित सप्तखंड का नंद्यावर्त महल, भगवान महावीर का उत्तुंग शिखर से झिलमिलाता धवल मंदिर, त्रिकाल चौबीसी मंदिर, नवग्रह शांतिजिन मंदिर, ऋषभदेव मंदिर आदि उनकी इस भावना की जीवन्त कथा सुना रहे हैं। कुण्डलपुर (नालंदा) जैसा कि हम जानते हैं महाराजा सिद्धार्थ की राजधानी रही है। भगवान महावीर की माता महाराजा चेटक-जो वैशाली के राजा थे, उनकी पुत्री थीं। इस तरह भगवान महावीर की ननिहाल वैशाली थी यह निर्विवाद सत्य है। कुछ दिगम्बरेतर जैन लेखक, बौद्ध धर्मावलंबी एवं हिन्दु विद्वानों ने वैशाली भगवान महावीर की जन्मभूमि थी यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया। उन्होंने कुछ भौगोलिक तर्वâ भी दिए पर वे यह भूल गये कि प्रदेश की सीमाएं भौगोलिक परिवर्तन व राजकीय विभाजन से भी बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए सदियों से बिहार स्थित श्री सम्मेदशिखर जी आज झारखंड में है। तो क्या हम शिखरजी के स्थान को बदल देंगे? इस संदर्भ में हमारे बुजुर्ग विद्वान प्रा. श्री नरेन्द्र प्रकाश जी, पं. शिवचरनलाल जी एवं डॉ. अभयप्रकाश जी आदि अनेक ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत कर चुके हैं। पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी, आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने तथ्यों को पूर्ण पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर भी इसे ही जन्मभूमि सिद्ध किया है। भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) को शत-शत प्रणाम करते हुए पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के चरणों में वंदामि कहकर इतना ही कहूँगा कि हे माँ! आपने जो तीर्थोद्धार का व्रत लिया है उसमें हम सब आपके साथ हैं। हम अपना कार्य आगे बढ़ायेंगे।