परमपूज्य गणिनी आर्यिकाप्रमुख युग की प्रथम बालयोगिनी अभीक्ष्णज्ञानापयोगिनी मातु श्री आर्यिका रत्नमणिस्वरूपा श्री ज्ञानमती माताजी के पावन चरणारविन्द में स्याद्वादमती का केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेद बार त्रिधा त्रिकाल वंदामि वंदामि वंदामि।
पूज्य माताजी इस युग की महान नारी रत्न हैं, आपने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के द्वारा जो यशस्वी कार्य किये हैं, उससे इस युग का इतिहास कभी भी अक्षुण्ण नहीं हो सकता।
कुण्डलपुर के इतिहास को आपने साकार रूप देकर अवर्णनीय कार्य किया है। तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि का अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन करना माँ त्रिशला का अभिनंदन करना है क्योंकि नारी की महिमा, नारी की गौरव गाथा का इतिहास नारी ही जान सकती है, माँ के गौरव को बढ़ाकर मातृभूमि का अभिनंदनरूप महान कार्य आप ही ने किया है।
हम बालब्रह्मचारी आर्यिकाओं का द्वार खोलने वाली मातुश्री आपकी यशोगाथा का गान हम युगों-युगों तक करते रहेंगे, पुन: पुन: वंदामि।