पराई स्त्री के साथ या परपुरुष के साथ रमने को कुशील कहते हैं। इस पाप को करने वाले व्यभिचारी, जार, बदमाश कहलाते हैं और लोक में बुरी नजर से देखे जाते हैं।
रावण ने सीता के रूप पर मुग्ध होकर चोरी से उसका हरण कर लिया और सीता को हर तरह से अपने वश में करने के उपाय किये, किन्तु निष्फल रहा। अन्त में युद्ध में रामचन्द्र के भाई लक्ष्मण के द्वारा मारा गया और नरक में चला गया। देखो! परस्त्री की इच्छा मात्र से रावण नरक चला गया।
तब जो परस्त्री का सेवन करते हैं-इनको तो नरकों के दु:ख निश्चित ही भोगने पड़ते हैं। इसलिए कुशील पाप का त्याग कर देना चाहिए। सीता ने अपने शील की रक्षा की, इसलिए उसकी परीक्षा में अग्नि भी जल हो गई थी।
आज तक सर्वत्र विश्व में सीता के शील की कीर्ति फैल रही है और रावण के कुशील भाव की अकीर्ति फैल रही है कोई माता अपने बालक का नाम रावण नहीं रखना चाहती है, किन्तु बालक-बालिकाओं का रामचन्द्र और सीता यह नाम बड़े प्यार से रखते हैं।