नवमे नारायण । त्रेसठ शलाका पुरूषों में से एक ।
हरिवंश पुराण में श्रीकृष्ण के पूर्व भवों में पूर्व के चौथे भव से वर्णन मिलता है कि यह पूर्व के चौथे भव में अमृतरसायन नामक मांसपाचक थे फिर तीसरे भव में तीसरे नर्क गये वहां से आकर यक्षलिक नामक वैश्यपुत्र हुए फिर पूर्व के भव में निर्नामिक राजपुत्र हुए और वहां से आयु पूर्णकर वर्तमान भव में वसुदेव एवं देवकी के पुत्र हुए जहां अपने मामा कंस द्वारा इन्हें मारने का येन केन प्रकारेण बहुत प्रयास किया गया क्योंकि कं स का वध इनके हाथों होना था पर विधि को इनकी मृत्यु मंजूर न थी यह नन्द गोप के यहां पले पुन: कंस के द्वारा छल से बुलाए जाने पर इन्होंने मल्लयुद्ध में कंस को मार दिया ।
पुन: रूक्मिणी का हरण कर उसके साथ विवाह किया तथा अन्य अनेकों कन्याएं विवाह कर अनेंको पुत्रो को जन्म दिया । प्रद्युम्न कुमार इन्हीं श्रीकृष्ण एवं रूक्मिणी के पुत्र थे । महाभारत के युद्ध में इन्होने पाण्डवों का पक्ष लिया तथा जरासंध (प्रतिनारायण) को मारकर नवमें नारायण के रूप में प्रसिद्ध हुए । अन्त में भगवान नेमिनाथ की भविष्यवाणी के अनुसार द्वारका नगरी का विनाश हुआ और ये भावनाओं का चिन्तवन करते हुए जरत् कुमार के बाण द्वारा मृत्यु को प्राप्त हो तीसरे नर्क में चले गये । भविष्यकालीन चौबीसी में यह निर्मलप्रभ नाम के सोलहवें तीर्थंकर होंगे ।