काजल, टीकी, बोर, नथ, महन बरी से बेस, बाई बनगी बीनणी, चली वीराने देस।
हाथों मेहंदी राचणी , सिंदूर शोभे शीश, दूधा न्हां पूतां फलों , मायड़ दी आशीष।
अग्नि का साक्ष्य, रिवाजों की डगर, सुहाग के गीत, शहनाई की गूंज के साथ दो परिवारों को जोड़ने की भावना, अपने आपको अर्पण करने की कामना के साथ मंगल प्रवेश होता है नई बहू का। सात जन्मों के बंधन में बंधने के लिये सात फैरों की रस्म होती है। छठी भांवर पूर्ण होते ही सात वचन लिये जाते हैं और नैहर से ममत्व छोड़कर कन्या अपने पति का अनुसरण करती हुई पीछे—पीछे चलने लगती है , सातवां फैरा पूरा होते ही वह अपने पति की अद्र्धांगिनी, जीवन संगिनी बन जाती है। एक पल में ही रिस्तों का रास्ता बदल जाता है , माता— पिता का स्थान सास ससुर ले लेते हैं, तो भाईयों का स्थान देवर—जेठ । भाभी का रूप जिठानी में देखने की चाहत होती है तो ननदी की अठखेलियों में छोटी बहन की खोज रहती है। बिदाई के वक्त जहां बाबुल की आँखें कहती हैं:—
बाबुल की दुआयें लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले,
मैके की कभी ना याद आये, ससुराल में इतना प्यार मिले।
वहीं माता—पिता अपने कलेजे के टुकड़े को भारी दिल से बिदाई देते है उसके गृहस्थ जीवन के सुखमय होने की कामना करती है और अपने अनुभव को गीत की इन पंक्तियों में बांधकर बेटी को हिदायत भी देती है :—
मायड़ बोली सुन ये बेटी, म्हरि सीख हिये धर जे ,
सास—ससुर को केणो सुणजो, सबसे नेह घणो रख जे।
लाज पीहर की रख जो बेटी, बणजो किस्मत वाली हो,
आज छोड़ सहेलियां रो साथ जो चाली, डोली में मतवाली हो राज ।
पीहर की लाज रखते हुये अपने ससुराल वालों को सम्मान देकर अपने की हकदार बनती है। नये घर की नवीन परंपराओं के साथ, नये रिस्तों में, नये परिचितों के बीच नये जीवन की नई आकांक्षाओं को लिये नई बहू वैâसे सभी की लाड़ली बहू बनें प्रस्तुत है चंद उपाय:—
(१) परिवार के सदस्यों की जीवनचर्या का बारीकी से अध्ययन करें और परिवार की परंपरानुसार अपनी जीवन शैली बनाने का प्रयास करें।
(२) कहते हैं ‘First Impression—Last Impression’ इसलिये अपने प्रथम प्रभाव को प्रभावोत्पादक बनायें । उदा.—प्रात: जल्दी उठना, बड़ों के चरण स्पर्श करना, तथा मुस्कुराहट से सभी का स्वागत करना।
(३) पीहर की चीजों से ससुराल की चीजों की तुलना न करें । यथा संभव ससुराल की वस्तुओं की बुराई करने से बचें।
(४) यदि आप उच्चशिक्षित हैं / शिक्षित हैं तो अपने देवर,ननद के अध्ययन में सहयोग दें, उनके भविष्य के लिये यदि वे चाहें तो उचित मार्ग दर्शन देकर उनका भविष्य सवारें।
(५) परिवार में सभी के स्वास्थ्य के बारे में जानें यदि सास, ससुर, या किसी को भी प्रतिदिन दवाईयां लेना पड़ती हो तो उनकी दवाईयों और दवाई देने का समय अवश्य ध्यान रखें । आपकी छोटी सी चिंता उन्हें अपने परिवार की चिंता से मुक्त कर सकती है।
(६) किसी भी ऐसी बात की जिद ना करें जिसे परिवार के बुजुर्ग नापसंद करते हों।
(७) मितव्ययी बनें । अनावश्यक खर्च करने वाली बहू तो क्या बेटी भी चिंता का विषय बन जाती है।
(८) ससुराल के रिस्तेदारों की अवहेलना ना करें। बल्कि उनका यथोचित सम्मान करें। क्योंकि आपके गुणों की गंध इनके द्वारा ही बाहर फैलेगी।
(९) काम से जी ना चुराये, बल्कि घर के प्रत्येक छोटे—बड़े कार्य में सभी का सहयोग करें।
(१०) यह सही है कि आपके पति आपके जीवन साथी हैं। आपके अंतरंग मित्र हैं उनके साथ अपने समय को बांटना आपका प्रथम अधिकार है। परंतु यह भी ना भूलें कि आपसे पहले आपके पति पर इस परिवार का हक बनता है । इस परिवार के प्रति आपके पति के कुछ उत्तरदायित्व हैं जिन्हें पूरा करने में सहयोग देना आपका कत्र्तव्य है। यदि आप इस बात का ध्यान रखेंगी तो निस्संदेह परिवार में आपको भी पुत्री सा ही प्यार मिलेगा।
(११) यह तुम्हारा है, यह मेरा है इस भावना को घर ना करने दें बल्कि तीज—त्यौहारों पर वस्त्र व गहने आपस में मिल— जुलकर चयन करके पहनें। अपनी अलमारी या कमरे का ताला अवश्य लगायें परंतु उसकी चाबी अपनी कमर में खोंसने की गलती न करें बल्कि अपने घर के बुजुर्गों या जिम्मेदार व्यक्ति पर अपना विश्वास जतायें।
(१२) खाने—पीने की चीजों को लेकर ना नुकूर ना करें, ना ही किसी प्रकार की टीका—टप्पणी करें । यदि आपको कोई चीज पसंद नहीं भी हो तो सामने वालों का मन रखने के लिये भले ही थोड़ी सी लें परंतु बुरा सा मुंह ना बनाये।
(१३) आपकी सहेली या परिवार का कोई सदस्य ससुराल में आपसे मिलने जाये तो अपनी ससुराल वालों से उनका परिचय अवश्य करायें।
(१४) जब भी बोलें हित,मित, प्रिय वचन बोलकर सभी का दिल जीतने का प्रयास करें।
(१५) यदि आप शादी से पूर्व ही सर्विस में हैं तो अपनी सर्विस के साथ ही परिवार में भी सामंजस्य रखें।
(१६) परिवार के बुजुर्गों की धार्मिक आस्थाओं का मजाक ना बनायें बल्कि धार्मिक कार्यों में उनकी सहयोगी बनें।
(१७) एक अच्छी बहू को यदि प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान है तो वह सोने पर सुहागा सिद्ध होगा।
(१८) जब भी परिवार से बाहर कहीं जायें, परिवार के लोगों को बताकर उनकी आज्ञा लेकर जायें, और उनकी आशानुरूप नियत समय का ध्यान रखें।
(१९) अपने व्यवहार में शिष्टाचार रखें, शादी के बाद ससुराल ही आपका परिवार है। अत: अपने परिवार की अच्छाईयों की प्रशंसा अवश्य करें परंतु भूलकर भी ऐसी बातें जो आपको अच्छी नहीं लगती हैं बाहरी व्यक्ति को या अपने पीहर वालों को न बतायें। क्योंकि सम्मान देने से सम्मान और प्रशंसा देने से प्रशंसा मिलती है।
(२०) घरेलू कामकाज, आपकी नौकरी या व्यवसाय के बीच अपने दाम्पत्य जीवन की मधुरता कायम रखें क्योंकि यही सफल गृहस्थी की निशानी है। जो नवविवाहिता उपरोक्त सूत्रों को ध्यान में रखकर अपने ससुराल में समर्पण देती है वही एक दिन कह सकती है :—
मैं तो भूल चली बाबूल का देश, पिया का घर प्यारा लगे।
जाके मैके को दे दो संदेश, पिया का घर प्यारा लगे।
वही बहू यह कहकर गौरवान्वित होती है :—
ननदी में देखी है बहना की सूरत, सासूजी मेरी है ममता की मूरत।
पिता जैसा ससुरजी का भेष, पिया का घर प्यारा लगे।