कोटि-कोटि मस्तक ने तेरा, वरदहस्त जो पाया है।
इसलिए माँ ज्ञानमती कह, सबने प्यार लुटाया है।। टेक.।।
नारी जब संतान जनमती, तब माता कहलाती है,
इससे पूर्व कभी उसकी, माता संज्ञा नहि आती है,
पर क्या कोई क्ंवारी कन्या, माँ का रूप सजाती है,
जग से वैरागी बन तुमने, जगमाता पद पाया है।
इसीलिए माँ ज्ञानमती कह, जग ने प्यार लुटाया है।।१।।
महावीर के बाद कोई, इतिहास नहीं बन पाया था,
किसी जैन साध्वी का कोई, ग्रन्थ लिखा नहि आया था
कवियों ने कविताओं में, सतियों का रूप बताया था,
उसी रूप को तुमने अपनी, कृतियों से दर्शाया है।
इसीलिए माँ ज्ञानमती कह, जग ने प्यार लुटाया है।।२।।
सभी राजनेता तेरे, चरणों में आकर झुकते हैं,
तेरी त्याग तपस्या से, संस्कृति को धन्य समझते हैं,
विद्वज्जन भी आ तुमसे, शास्त्रों का सार समझते हैं,
क्योंकि ‘चंदनामति’ युग ने, तुम सम विद्वान न पाया है।
इसीलिए माँ ज्ञानमती कह, जग ने प्यार लुटाया है।।३।।