कर्मभूमि के मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव ही इन नरकों में उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु नारकी, देव, भोग-भूमियाँ, विकलत्रय और एकेन्द्रिय जीव नरकों में नहीं जा सकते हैं। इन नरकों से निकले हुए जीव भी वापस नरक में उसी भव से नहीं जा सकते हैं। न देव हो सकते हैं एवं विकलत्रय, एकेन्द्रिय और भोग भूमियाँ भी नहीं हो सकते हैं। मतलब यही है कि नरक से निकलकर नारकी जीव कर्म भूमियाँ मनुष्य और तिर्यंच ही होते हैं। इनमें भी गर्भज, संज्ञी एवं पर्याप्त ही होते हैं।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव मात्र घम्मा पृथ्वी में जाने की योग्यता रखते हैं। सरीसृप प्रथम और द्वितीय नरक में जाने की योग्यता रखते हैं। पक्षी तृतीय पृथ्वी तक, भुजंग आदि चतुर्थ पृथ्वी तक, सिंह पांचवीं तक, स्त्रियाँ छठी तक एवं मत्स्य और मनुष्य सातवीं पृथ्वी तक जाने की योग्यता रखते हैं।