पृथ्वी आदि पाँच स्थावर, विकलत्रय ये जीव कर्म भूमिज मनुष्य या तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। विशेष इतना है कि अग्निकायिक, वायुकायिक जीव मरकर उसी भव से मनुष्य नहीं हो सकते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यंत सभी जीव भोगभूमि में नारकियों में उत्पन्न नहीं होते हैं। विशेषता यह है कि असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव प्रथम नरक में और भवनत्रिक में जन्म ले सकते हैं।
कर्म भूमिज पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यंच सम्यक्त्व व व्रतों के प्रभाव से मरकर बारहवें स्वर्ग तक चले जाते हैंं। परन्तु भोगभूमिज तिर्यंच मरकर ईशान स्वर्ग तक ही उत्पन्न होते हैं। स्वर्ग, नरक और भोगभूमि में विकलत्रय जीवों की उत्पत्ति नहीं होती। एकेन्द्रिय में कमल की अवगाहना कुछ अधिक १००० योजन, द्वीन्द्रिय शंख की १२ योजन, तीन इंद्रिय की ३ कोस की, चार इंद्रिय की १ योजन और पंचेन्द्रिय महामत्स्य की १ हजार योजन प्रमाण है, ये महामत्स्य आदि स्वयंभूरमण समुद्र में पाये जाते हैं।
एक राजु चौड़े, मोटे मध्यलोक के अंतर्गत तिर्यंचों का वर्णन अति संक्षेप से हुआ है।