यह धर्मपरायण देश है, यहाँ मजहबी भेदभाव नहीं है। उपासना पद्धति को लेकर शास्त्रार्थ तो होते रहे हैं लेकिन इस देश की विशेषता रही है कि दूसरे के सत्य को भी स्वीकार करने की तत्परता रही है। यह प्रसन्नता की बात है कि भगवान ऋषभदेव जी का निर्माण महोत्सव मनाया जा रहा है। चौबीस तीर्थंकर हुए हैं, सभी आदरणीय हैं, पूजनीय हैं लेकिन सबके बारे में जितनी जानकारी चाहिए, उतनी नहीं है। अभी पूज्य माताजी कह रही थीं कि कई लोग तो यह समझते हैं कि जैनधर्म की स्थापना भगवान महावीर ने की, जबकि सच्चाई यह है कि वे २४वें तीर्थंकर थे, उनसे पहले २३ तीर्थंकर और हुए हैं। मेरे सरकारी दफ्तर के कमरे में तेईसवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ जी की मूर्ति रखी हुई है। बहुत से लोग आते हैं, पहचान नहीं पाते हैं उनको बताने का काम श्री धनंजय जी ही करते हैं। लेकिन जानकारी होनी चाहिए। जैसे-जैसे हम महापुरुषों के बारे में, देवताओं के बारे में जानते हैं, जानने की कोशिश करते हैं, ज्ञान के नये आयाम हमारे सामने खुलते हैं।