परिहारविशुद्धि संयम धारण करने वाले महामुनि भी तीनों कालों की संध्याओं को छोड़कर दो गव्यूति प्रमाण विहार करते रहते हैं। यथा-‘‘पाँच प्रकार के संयम में से अभेदरूप से अथवा भेदरूप से एक संयम से युक्त सर्वसावद्य का सर्वथा परित्याग करने वाले साधु पाँच समिति और तीन गुप्ति से सहित होते हुये परिहारविशुद्धि संयम को प्राप्त होते हैं। जन्म से लेकर तीस वर्ष तक सदा सुखी रहकर पुन: दीक्षा लेकर श्री तीर्थंकर भगवान के पादमूल में आठ वर्ष तक प्रत्याख्यान नामक नवमें पूर्व का अध्ययन करने वाले के यह संयम होता है। इस परिहारविशुद्धि संयम वाले मुनि तीन संध्याकालों को छोड़कर प्रतिदिन दो कोसपर्यंत गमन करते हैं। रात्रि को गमन नहीं करते हैं।इनके वर्षाकाल में गमन करने या न करने का कोई नियम नहीं है। चूंकि जीव राशि में विहार करते हुये भी इन मुनियों से जीवों को बाधा नहीं होती है, अतएव इन साधुओं के लिए वर्षायोग का कोई नियम नहीं है।