१. सुमेरु पर्वत तीनों लोकों में सबसे ऊँचा और पवित्र पर्वत है।
२. ४० करोड़ मील ऊँचे इसी सुमेरु पर्वत की पाण्डुक शिला पर तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है।
३. हस्तिनापुर तीर्थ पर जम्बूद्वीप रचना के मध्य यह सुमेरुपर्वत १०१ फुट ऊँचा बना है, जिसमें १३६ सीढ़ियाँ चढ़कर १६ चैत्यालयों के दर्शन होते हैं।
४. जम्बूद्वीप जैन भूगोल को दर्शाने वाली ब्रह्माण्ड की वह रचना है जिसके एक छोटे से भाग आर्यखण्ड में आज का पूरा विश्व विद्यमान है।
५. सम्पूर्ण भारत एवं विश्व में मंदिर के साथ समवसरण, नन्दीश्वर द्वीप, कैलाशपर्वत आदि रचनाएं तो अनेकों हैं किन्तु ‘‘जम्बूद्वीप रचना’’ मात्र एक हस्तिनापुर में ही है, इसीलिए उसका दर्शन करने देश-विदेश के पर्यटक हस्तिनापुर जाते हैं।
६. हस्तिनापुर तीर्थ यद्यपि भगवान शांति, कुंथु, अरहनाथ के जन्म से पावन, महाभारत के कथानक से प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ तो प्राचीन काल से है, फिर भी गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से दर्शनीय स्थल जम्बूद्वीप के निर्माण के पश्चात् यात्रियों के साथ-साथ उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग के द्वारा ‘‘धरती का स्वर्ग’’ माना गया है।
७. जम्बूद्वीप स्थल पर श्वेत कमल मंदिर में अवगाहना प्रमाण भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान है जो बड़ी चमत्कारिक है। उन कल्पवृक्ष भगवान महावीर के समक्ष कुछ भी भावना भाने से मनवाञ्छित फल की प्राप्ति होती है।
८. जम्बूद्वीप स्थल पर बिल्कुल नये ढंग का एक ध्यान मंदिर है जहाँ भक्तगण ‘‘ह्रीं’’ मंत्र की प्रतिमा के समक्ष मौनपूर्वक कुछ देर बैठकर आत्मशांति का अनुभव करते हैं।
९. पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी बीसवीं शताब्दी की प्रथम बालब्रह्मचारिणी आर्यिका हैं, जिन्होंने १८ वर्ष की उम्र में सन् १९५२ में गृहत्याग कर साध्वी परम्परा में ब्राह्मी एवं चन्दनबाला के समान दीक्षा धारण कर कुमारी कन्याओं के त्यागमार्ग का शुभारंभ किया।
११. गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने जैन न्याय के सर्वोच्च एवं क्लिष्टतम ग्रंथ ‘‘अष्टसहस्री’’ का हिन्दी अनुवाद करके न्याय दर्शन के उद्भट विद्वानों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है।
१२. गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने ‘‘कातंत्र रूपमाला’’ नामक संस्कृत व्याकरण ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करके दिगम्बर जैन चतुर्विध संघ परम्परा को संस्कृत भाषा के अध्ययन का अपूर्व अवसर प्रदान किया है।
१३. पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने नियमसार ग्रंथ की संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में सरल टीका लिखकर जहाँ आचार्य अकलंकदेव, वीरसेन स्वामी एवं जयसेनाचार्य आदि का स्मरण कराया है, वहीं अध्यात्मप्रेमियों के लिए रत्नत्रय धारण करने हेतु सच्चे ज्ञान का मार्ग भी प्रशस्त किया है।
१४. पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र, तीन लोक मण्डल विधान आदि अनेक पूजा-विधानों की रचना करके पंचमकाल में भक्तों के लिए कर्म निर्जरा का प्रबल माध्यम प्रस्तुत कर दिया है।
१५. गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने जैनधर्म के प्राचीनतम सिद्धान्त ग्रंथ ‘‘षट्खण्डागम’’ के सूत्रों पर ‘‘सिद्धान्तचिंतामणि’’ नामक सरल संस्कृत टीका लिखकर साधु जगत में कीर्तिमान् स्थापित किया है।
१६. पूज्य माताजी ने २५० से अधिक ग्रंथ लिखकर प्रथम लेखिका साध्वी के रूप में नारी जाति का इतिहास परिवर्तित कर दिया है।
१७. श्री ज्ञानमती माताजी के प्रचुर साहित्यिक अवदान से प्रभावित होकर अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद ने डी.लिट् की मानद उपाधि से उन्हें अलंकृत किया है।
१८. तीर्थंकर भगवन्तों की जन्मभूमियों को विकसित करने के क्रम में हस्तिनापुर के पश्चात् प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव एवं अन्य ४ तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या को विकसित कर उसे ‘ऋषभ जन्मभूमि’ के रूप में विश्व के मानस पटल पर पूज्य माताजी ने ही अंकित किया है।
१९. भगवान महावीर की जन्मभूमि-कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार में मात्र २२ माह के अल्प समय में अत्यन्त भव्य ‘नंद्यावर्त महल तीर्थ’ का निर्माण कराने वाली पूज्य ज्ञानमती माताजी ही हैं।
२०. ‘तीर्थंकर जन्मभूमि विकास समिति’ का गठन कराकर चौबीसों तीर्थंकरों की १६ जन्मभूमियों के विकास की प्रेरणा पूज्य ज्ञानमती माताजी ने ही प्रदान की है।
२१. भगवान ऋषभदेव की दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक भूमि-प्रयाग (इलाहाबाद) में ‘तीर्थंकर ऋषभदेव दीक्षास्थली’ का भव्य निर्माण कराकर पूज्य ज्ञानमती माताजी ने ही प्रयाग तीर्थ को विश्व के समक्ष जैन तीर्थ के रूप में स्थापित किया है।
२२. सम्पूर्ण देश में जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति, भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार एवं भगवान महावीर ज्योति रथों के प्रवर्तन द्वारा ३-३ बार जैनधर्म का डंका बजाने वाली पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ही हैं।
२३. २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की जन्मभूमि-वाराणसी से उद्घाटित ‘भगवान पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव वर्ष’ पूज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से ही सारे देश में मनाया जा रहा है।
२४. पूज्य माताजी की अपार प्रतिभा शक्ति की स्तुति करते हुए समाज ने समय-समय पर उन्हें न्याय प्रभाकर, चारित्रचन्द्रिका, युगप्रवर्तिका, गणिनीप्रमुख, राष्ट्रगौरव, वाग्देवी, तीर्थोद्धारिका इत्यादि कितनी ही उपाधियों से सम्मानित करके स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया है।