प्रश्न – क्या बाहुबली भगवान के शल्य थी ?
उत्तर – शल्य नहीं थी, क्योंकि शल्य सहित मुनि के मन:पर्ययज्ञान व ऋद्धियाँ नहीं हो सकती हैं। बाहुबली स्वामी ध्यान में लीन थे, वे भावलिंगी मुनि थे, आदिपुराण भाग-२, पृ. २१३ से लेकर पृ.२१७ तक उनके ऋद्धियों का वर्णन है। हाँ, उनके किंचित् विकल्प कभी-कभी हो जाता था कि मेरे भाई को मुझसे क्लेश हो गया अत: यह सौहार्द भाव मन में आ जाता था, यही कारण है उनके निर्विकल्परूप शुक्लध्यान नहीं हो पाया था। श्री भरत के आते ही तथा निर्विकल्प ध्यान होते ही उन्हें केवलज्ञान प्रगट हो गया था।
-श्लोक-
संक्लिष्टो भरताधीश: सोऽस्मत्त इति यत्किल।
हृदस्य हार्दं तेनासीत् तत्पूजाऽपेक्षि केवलम्।।१८६।।
अर्थ – वह भरतेश्वर मुझसे संक्लेश को प्राप्त हुआ है अर्थात् मेरे निमित्त से उसे दुख पहुँचा है यह विचार बाहुबली के हृदय में विद्यमान रहता था, इसलिए केवलज्ञान ने भरत की पूजा की अपेक्षा की थी। अर्थात् उनके हृदय में भाई भरत के प्रति सौहार्द-स्नेहभाव आ जाता था।