१. श्रावकों के सत्रह नियम—(इनकी मर्यादा करें) (१) भोजन (२) सचित्त वस्तु (३) गृह (४) जलपान (५) विलेपन (६) तांबूल (७) पुष्प सुगंध (८) नृत्य (९) गीत—श्रवण (१०) स्नान (११) ब्रह्मचर्य (१२) आभूषण (१३) वस्त्र (१४) शय्या (१५) औषध (१६) सवारी (१७) दिशा गमन।
२.असंयम के सत्रह स्थान—(यहाँ संयम रखें) (१) हिंसा (२) झूठ (३) चोरी (४) कुशील (५) परिग्रह (६) स्पर्शन (७) रसना (८) घ्राण (९) चक्षु (१०) कर्ण (११) क्रोध (१२) मान (१३) माया (१४) लोभ (१५) मन (१६) वचन (१७) काय से नित्य कुचेष्ठा।
३. अयोग्य व्यापार के सत्रह भेद— (१) चर्म व्यापार (२) रेशमी, ऊनी वस्त्र (३) नशाकारक पदार्थ (४) मद्य (५) जूता (६) ईट भट्टा (७) जंगल में आग लगाना (८) पशु (९) हलवाई (१०) जंगल काटना (११) नट, नाटक, सिनेमा (१२) हिंसक शस्त्र (१३) यांत्रिक (मील, कारखाना) (१४) इत्र, सेंट, फुल, (१५) हीरा, लाख, गोंद, मोम (१६) बावड़ी, कुँआ, तालाब, खदान आदि खोदना (१७) सड़ा हुआ अनाज।
४. परमागम में सत्रह प्रकार के मरण बताये हैं— (१) अवीचीमरण (२) तद्भवमरण (३) अवधिमरण (४) आद्यांतमरण (५) बाल—मरण (६) पंडित मरण (७) अवसन्न मरण (८) बाल पंडितमरण (९) सशल्य मरण (१०) पलाय मरण (११) वशार्त मरण (१२) विप्राण मरण (१३) गृघ्रपृष्ठ मरण (१४) भक्त प्रत्याख्यान मरण (१५) प्रायोपगमन मरण (१६) इंगिनि मरण (१७)केवली मरण।