
| (१) दर्शन विशुद्धि | (२) विनय संपन्नता |
| (३) शीलव्रतेश्वनतिचार | (४) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग |
| (५) संवेग | (६) शक्तितस्त्याग |
| (७) शक्तितस्तप | (८)साधु समाधि |
| (९) वैयावृत्यकरण | (१०) अरिहंत भक्ति |
| (११) आचार्य भक्ति | (१२) बहुश्रुत भक्ति |
| (१३) आवश्यकापरिहाणी | (१४) मार्ग प्रभावना |
| (१५) बहुश्रुत भक्ति | (१६) प्रवचन वत्सलत्व। |
| (१) सौधर्म | (२) ईशान |
| (३) सानतकुमार | (४) माहेन्द्र |
| (५) ब्रह्य | (६) ब्रह्योत्तर |
| (७) लांतव | (८) कापिष्ठ |
| (९) शुक्र | (१०) महाशुक्र |
| (११) शतार | (१२) सहस्त्रार |
| (१३) आनत | (१४) प्राणत |
| (१५) आरण | (१६) अच्युत |
| (१) ऐरावत हाथी | (२) सिंह |
| (३) बैल | (४) लक्ष्मी |
| (५) सूर्य | (६) चंद्र |
| (७) किलोल करती मछली | (८) दो कलश |
| (९) कमल सहित सरोवर | (१०) समुद्र |
| (११) दो मालायें | (१२) सिंहासन |
| (१३) निर्धूम अग्नि | (१४) विमान |
| (१५) नागेन्द्र भवन | (१६) रत्न राशि |
| (१) जंबूद्वीप | (२) धातकीखण्ड |
| (३) पुष्करवर | (४) वारुणीवर |
| (५) क्षीरवर | (६) घृतवर |
| (७) क्षौद्रवर | (८) नंदीश्वर |
| (९) अरुणवर | (१०) अरुणाभास |
| (११) कुण्डलवर | (१२) शंखवर |
| (१३) रुचकवर | (१४) भुजगवर |
| (१५) कुशवर | (१६) क्रौचवर। |
