व्यक्ति २-अरे वाह भैया! तुमने तो बहुत अच्छा गीत सुनाया है, मैं तो मारे खुशी के नाचने ही लग गया।
व्यक्ति १-नाचने-गाने की बात तो हो गई, अब तुम यह बताओ कि गीत में मैंने क्या बताया था!
व्यक्ति २-मैं केवल नाच नहीं रहा था, मैंने तो तुम्हारे गीत का एक-एक अक्षर खूब ध्यान से सुना है।
व्यक्ति १-अच्छा! जरा बताओ तो सही!
व्यक्ति २-भैया! तुम भगवान के पाँच कल्याणक के बारे में बता रहे थे ना!
व्यक्ति १-हाँ! बता तो रहा था।
व्यक्ति २-और अगर कहो तो मैं पाँचों कल्याणक के नाम भी बता दूँ?
व्यक्ति १-हाँ, हाँ, जल्दी से बता दो।
व्यक्ति २-सुनो भैया! गरभकल्याणक, जनमकल्याणक (थोड़ा रुककर) दीक्षाकल्याणक और देखो! निर्वाणकल्याणक, और, और फिर केवलज्ञान कल्याणक, ठीक है न भैया!
व्यक्ति १-नहीं, पहले केवलज्ञान कल्याणक फिर निर्वाणकल्याणक।
व्यक्ति २-अच्छा! लेकिन भैया! एक बात बताओ कि आज आप पाँच कल्याणक के बारे में क्यों बता रहे हो?
व्यक्ति १-ये तुमने बहुत बढ़िया बात पूछी है, ध्यान से सुनना।
व्यक्ति २-हाँ भैया, दोनों कान खोल लिए हैं, बहुत ध्यान से सुनूँगा।
व्यक्ति १-सुनो! पहले ये बताओ कि १६वें, १७वें और १८वें तीर्थंकर भगवान कौन-कौन हैं?
व्यक्ति २-१६वें शांतिनाथ, १७वें कुंथुनाथ और १८वें अरहनाथ।
व्यक्ति १-अच्छा, अब ये बताओ कि इन तीनों भगवान की जन्मभूमि कहाँ है?
व्यक्ति २-हस्तिनापुर!
व्यक्ति १-अरे वाह! तुम तो बहुत अच्छे आदमी हो!
व्यक्ति २-हाँ भैया! वो तो हम हैं ही।
व्यक्ति १-अच्छा, अब सुनो मेरी बात। हस्तिनापुर नगरी में बहुत बड़ा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव होने जा रहा है!
व्यक्ति २-भैया! कब से है?
व्यक्ति १-१४ फरवरी से १९ फरवरी २०१० तक।
व्यक्ति २-अच्छा! कौन से भगवान की पंचकल्याणक है?
व्यक्ति १-शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ भगवान की।
व्यक्ति २-तो क्या इस प्रतिष्ठा में तीन भगवान विधिनायक रहेंगे?
व्यक्ति १-नहीं! विधिनायक तो शांतिनाथ भगवान ही रहेंगे।
व्यक्ति २-तो इसमें क्या खास बात है, पंचकल्याणक तो प्राय: कई जगह होते ही रहते हैं।
व्यक्ति १-यही तो बात है! ऐसी पंचकल्याणक हम सबकी जिंदगी में पहली बार होने जा रही है।
व्यक्ति २-(आश्चर्य से) अच्छा!
व्यक्ति १-हाँ! तीनों भगवान की ३१-३१ फुट ऊँची प्रतिमा हैं, उनका पंचकल्याणक है!
व्यक्ति २-क्या कहा भैया! ३१-३१ फुट ऊँची प्रतिमा! इतनी बड़ी-बड़ी प्रतिमा जयपुर से कैसे बनकर आई होंगी?
व्यक्ति १-अरे भैया! प्रतिमा हस्तिनापुर में ही बनाई गई हैं। जयपुर से नाठा जी के कारीगरों ने जाकर इन तीनों प्रतिमाओं को वहीं बनाया है!
व्यक्ति २-तब तो मैं हस्तिनापुर जरूर जाऊँगा और तीनों प्रतिमाओं के दर्शन करके अपना जीवन सफल करूँगा।
व्यक्ति १-और सुनो! वहाँ एक तीन लोक की बहुत सुन्दर रचना बन रही है, उसमें विराजमान होने वाली प्रतिमाओं की भी पंचकल्याणक है।
व्यक्ति २-तब तो बड़ा मजा आएगा, तीन लोक की रचना तो मैंने अभी तक कहीं देखा भी नहीं है। (तभी पीछे से एक अवधी प्रान्त के भाई अपनी पत्नी के साथ वहाँ आ जाते हैं और कहते हैं)-
दृश्य-2
अयोध्या प्रसाद-जरा हमहू का बताओ तुम लोग कहाँ जात हो?
व्यक्ति १-हम लोग हस्तिनापुर जा रहे हैं। अयोध्या प्रसाद-हाँ हाँ! वही तो हमहू कहित है, हम भी हस्तिनापुर जाइत है, वहाँ खूब बड़ी पंचकल्याणक होए जात है।
व्यक्ति २-हाँ हाँ! हम लोग भी इसीलिए जा रहे हैं। अयोध्या प्रसाद की पत्नी-सुनो जी! तुम तो आज का टिकट बुक कराओ, अच्छा, अब जल्दी घर चलो, हमका नाश्ता-पानी और बिस्तर का इंतजाम करेक है।
व्यक्ति १-नहीं बहन जी! वहाँ नाश्ता-खाना आदि ले जाने की कोई जरूरत नहीं है, वहाँ सब इंतजाम है। अयोध्या प्रसाद की पत्नी-अच्छा! ई तो बहुत बढ़िया बात है। अब तो बस कपड़ा रख लई बस!
व्यक्ति २-हाँ हाँ चलो! हमें भी तो तैयारी करनी है तथा अपने साथ कम से कम सौ लोगों को जरूर ले चलना है।
व्यक्ति १-हाँ भाई चलो! अयोध्या प्रसाद-ठीक है भैया! हम भी अपने साथी, रिश्तेदार, अड़ोसी-पड़ोसी सबका लइके हस्तिनापुर में मिलबै।
व्यक्ति २-ठीक है, ठीक है!
अयोध्या प्रसाद-अरे भैया! तनिक रुकौ तो सही, जाए से पहिले हमरी एक बात का जवाब और दइ देव ।
व्यक्ति २-हाँ भाई साहब! पूछिए।
अयोध्या प्रसाद-वहाँ रहे की का व्यवस्था है?
व्यक्ति २-वहाँ पर खूब सारे कमरे, कोठी, बंगले बने हैं, खूब अच्छी व्यवस्था है, सारी सुख-सुविधाएँ हैं, आप किसी बात की चिन्ता न करें।
अयोध्या प्रसाद-ठीक कहत हौ भैया! हस्तिनापुर के जैसी व्यवस्था तो हम कहूँ नाई देखा, बहुत तीरथ गएन, लेकिन जैसी सुन्दरता, जैसी व्यवस्था वहाँ है, वैसी और कहूँ नाई है।
व्यक्ति २-हाँ भैया! ये सब पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी का आशीर्वाद है। (सब लोग अपने-अपने घर जाने लगते हैं, तभी अयोध्या प्रसाद फिर रुक जाता है।)
अयोध्या प्रसाद-हम सुने हन कि वहाँ तीन लोक की रचना मा लिफट लगी है। (दोनों व्यक्ति एक-दूसरे का मुँह देखने लगते हैं)-
व्यक्ति १-भाई साहब! आपने क्या कहा? हम समझे नहीं। अयोध्या प्रसाद-अरे वही लिफट!
व्यक्ति २-यह लिफट क्या चीज होती है? भाई साहब! अयोध्या प्रसाद-अरे वही! जीमा एक बटन दबाओ, तोऊ नीचे से ऊपर तक पहुँचाए देत है। (दोनों व्यक्ति मुस्करा देते हैं)
व्यक्ति १-अच्छा, अच्छा, आप लिफ्ट की बात कर रहे हैं।
अयोध्या प्रसाद-(थोड़ा खिसियाकर)-हाँ हाँ, वही तो हमहू कहित रहै।
व्यक्ति २-हाँ, सुना तो हमने भी है कि वहाँ लिफ्ट से सिद्धशिला तक जाने की व्यवस्था की गई है।
अयोध्या प्रसाद की पत्नी-ई तो बहुत अच्छी बात है, अब हम हुंवा जाएके सिद्धशिला पर बैठ के सिद्ध भगवान का ध्यान करबै, हाँ।
अयोध्या प्रसाद-अब का हुइ है, तो तुम अब घर वापस न अइहौ।
अयोध्या प्रसाद की पत्नी-नहीं नहीं, जितने दिन हुुंवा रहिबै, उतने दिन ध्यान करबै, फिर वापस आए जइबै।
अयोध्या प्रसाद-तब तो ठीक है। (सभी लोग एक साथ मिलकर)
जय हो-सिद्ध परमेष्ठी भगवान की जय! शांतिनाथ भगवान की जय! पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी की जय!