श्रावकाध्याय संग्रह में क्रियाएँ तीन प्रकार की कही हैं। सम्यग्दृष्टि पुरुषों को वे क्रियाएँ अवश्य ही करनी चाहिए क्योंकि वे सब क्रियाएँ उत्तम फल देने वाली हैं।गर्भान्वय क्रिया, दीक्षान्वय क्रिया, कत्र्रन्वय क्रिया इस तरह विद्वान् लोगों ने तीन प्रकार की क्रियाएँ मानी हैं। गर्भान्वय क्रिया आधार (गर्भाधान) आदि त्रेपन जानना तथा दीक्षान्वय अड़तालीस समझना एवं कत्र्रन्वय क्रियाएँ सात हैं। महासागर से भी अत्यन्त अपार ऐसा जो श्रुतज्ञान के बारह अंगों में उपासकाध्ययन नाम का सातवां अंग है, उससे जो कुछ मुझे ज्ञान की एक बूंद प्राप्त हुई है, उसी के अनुसार मैं कहता हूँ ।