क्रिया ऋद्धि के आकाशगामित्व और चारणत्व ये दो भेद हैं।
१. आकाशगामित्व – इनमें से जिस ऋद्धि के द्वारा कायोत्सर्ग आसन अथवा अन्य प्रकार से ऊध्र्व स्थित होकर या बैठकर जाता है, वह आकाशगामित्व ऋद्धि है।
२. चारणऋद्धि – इस ऋद्धि को जलचारण, जंघाचारण, फलचारण, पुष्पचारण, पत्रचारण, अग्निशिखाचारण, धूम्रचारण, मेघचारण, धाराचारण, मर्वटतंतुचारण, ज्योतिश्चारण और मरुच्चारण ऐसे अनेकों भेद होते हैं। चार अंगुलप्रमाण पृथ्वी को छोड़कर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना जो बहुत योजनों तक गमन करना है, वह जंघाचारण ऋद्धि है। ऐसे ही सभी के लक्षण समझना।