क्रोध में अंधा हुआ मनुष्य पास में खड़ी माँ, बहिन और बच्चे को भी मारने लग जाता है। कोवेण रक्खसो वा, णराण भीमो णरो हवदि।
क्रुद्ध मनुष्य राक्षस की तरह भयंकर बन जाता है। रोसेण रुद्दहिदओ, णारगसीलो णरो होदि।
क्रोध से मनुष्य का हृदय रौद्र बन जाता है। वह मनुष्य होने पर भी नारक (नरक के जीव) जैसा आचरण करने लगता है। दीवयसिहव्व महिला कज्जलमइलं घरं कुणइ।।
जैसे दीपक की शिखा उजले घर को काजल से काला बनाती है, स्नेह—तेल के होने पर तपती है, वैसे ही दीप शिखा की भाँति क्रोधी स्त्री भी घर के पवित्र वातावरण को भी दूषित करती है, स्नेह से परिपूर्ण व्यक्तियों को भी तपाती है।