जो आत्मा को कषे अर्थात् दु:ख दे या पराधीन करे उसे कषाय कहते हैं। कषाय के चार भेद हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ।
क्रोध गुस्से को कहते हैं। इससे दूसरों का बुरा होने से पहले अपना बुरा हो जाता है।
कमठ ने अपने छोटे भाई मरुभूति की स्त्री से व्यभिचार किया। तब राजा ने उसे दण्ड देकर देश से निकाल दिया। वह तापसी आश्रम में पत्थर की शिला को हथेली पर रखकर ऊँची करके तपश्चरण कर रहा था।
मरुभूति भाई के मोह से उसे बुलाने गया किन्तु उस कमठ ने क्रोध से वह शिला भाई पर पटक दी, जिससे वह मर गया। कालान्तर में मरुभूति का जीव तो पार्श्वनाथ तीर्थंकर हो गया किन्तु कमठ के जीव ने दस भव तक दु:ख भोगते हुए मरुभूति के जीव को सताया।
अन्त में भगवान पार्श्वनाथ की पर्याय में उनके ऊपर भी भयंकर उपसर्ग किया। क्रोध के पाप से कमठ ने नरक तिर्यंच आदि गतियों में बहुत ही दु:ख भोगे हैं और मरुभूति क्षमा के प्रभाव से कमठ के उपसर्गों को जीतकर संकटमोचन, दु:खहरण भगवान् पार्श्वनाथ हो गये हैं इसलिए क्रोध कभी नहीं करना चाहिए।