क्रोध एक विकृत्त मनोवृत्ति है जो मनुष्य की शक्ति को जलाकर राख कर देती है। क्रोध आने पर मानव अपना संयम और धैर्य खो बैठता है। एक सीमा तक क्रोध को सहन किया जा सकता है।लेकिन क्रोध जब विकराल रूप धारण कर लेता है हिंसक क्रोध तो अत्यंत भयावह हो जाता है जिससे व्यक्ति का चारित्रिक पतन होता है। वह समाज में निंदा का पात्र बन जाता है। इससे बड़ा दुर्र्भाग्य और क्या होगा ? व्यक्ति अपनी ही नजरों में गिरने लगता है। समाज में वह शर्मशार होता है। प्रश्न उठता है कि क्रोध आता क्यों है ? इसका सर्वप्रथम उत्तर यही है कि ताकत वाला कमजोर व्यक्ति को दबाना चाहता है और अपनी ताकत का प्रदर्शन वह क्रोध द्वारा करता है। अहंकारी व्यक्ति भी अपना अहंकार क्रोध द्वारा व्यक्त करता है। अहंकारी व्यक्ति चाहता है कि उसका ही डंका बजना चाहिए। जब कोई उसकी नहीं सुनता तो उसका क्रोध भयंकर हो जाता है लेकिन प्रेम द्वारा इस क्रोध को जीता जा सकता है। अगर वही व्यक्ति दूसरों के प्रति प्रेम भावना बढ़ाए तो उसका क्रोध स्वयं शांत हो जाएगा। प्रेम द्वारा किसी को भी अपना बनाया जा सकता है लेकिन हमें स्वयं में आशा और विश्वास होना चाहिए।प्रेम जब आशा और विश्वास के साथ मिल जाएगा तो किसी को भी वश में किया जा सकता है और प्रत्येक समस्या हल हो सकती है। सामने वाले का अगर क्रोध शांत करना हो तो उस समय क्रोध का जवाब क्रोध से मत दो। समयके अंतराल पर अगर शांति से उस समस्या पर विचार किया जाए, तो क्रोध की अग्नि शांत हो सकती है। क्रोध जीवन में न आए इसके लिए जीवन से आलस्य को दूर भगाना होगा। जीवन में हर कार्य अनुशासन और नियमबद्ध रूप में होना चाहिए। जीवन में व्यवस्था होगी तो क्रोध को बल नहीं मिलेगा। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समयानुसार सभी कार्य करें।
आज के आधुनिक युग में मानव
आज के आधुनिक युग में मानव में सहनशीलता और सहयोग की कमी है। यह केवल अपने लिए जीना चाहता है। जहां दूसरों के लिए कुछ करना पड़ता है, वहीं वह घबरा जाता है और क्रोधित होकर झल्ला उठता है। इसका कारण है समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। अपने लिए तो सभी जीतें हैं, हमें चाहिए कि हम दूसरों के लिए जियें। हम दूसरों से सदव्यवहार करें। उनका उचित सम्मान करें। क्रोध स्वयं शांत हो जाएगा। क्रोध को शांत करने का सबसे उत्तम हल है कि जब क्रोध आप को पीड़ित करे, आप प्राकृति की शरण में जाएं। हरी भरी प्रकृति की गोद में फूलों को निहारें, नदी किनारे जाकर थोड़ी देर विश्राम करें, मन को शांति मिलेगी। इसके अतिरिक्त जब बहुत अधिक क्रोध सताए तो योग, प्राणायाम करें तथा प्रभु से जुड़ जाएं। अपने आप ही क्रोध शांत हो जायेगा। ऊंचे स्वर में अपने इष्टदेव के मंत्र का उच्चारण करें, उस समय आपकी नकारात्मक सोच स्वयं शांत हो जाएगी। आप इतने ऊंचे उठ जाएंगे कि क्रोध का नामोनिशान नहीं रहेगा। बुद्धि जो तेज भाग रही थी, आपके वश में आ जायगी। क्रोध की आग को शांत करने के लिए अपने जीवन से, ईष्र्या, द्वेष निकाल दें। बाहरी दुनियावी प्रपंचो से अपने को सीमित कर लें। समर्पण से भी क्रोध को जीता जा सकता है। सच का साथ दें, झूठ का सहारा न लें तभी आप क्रोध से कोसों दूर भाग सकते हैं। एक चुप सौ सुख। आप स्वयं पर हैरान होंगे कि इतनी मानसिक शांति मैने कैसे पा ली ? आपके जीवन में सहजता, सरलता और शांति का वास होगा। संकुचित मन विशाल हो जाएगा। आनंद, संतोष, प्रसन्नता से जीवन खिल उठेगा। क्रोध को शांत करने की यही सर्वोत्तम कुंजी है।