तर्ज-तीरथ कर लो पुण्य कमा लो……..
क्षमा गुण को मन में धर लो, क्षमा को वाणी में कर लो।
शत्रु-मित्र सबमें समता का, भाव हृदय भर लो।।
क्षमा गुण को मन में धर लो।।टेक.।।
मैत्री का हो भाव सभी, प्राणी के प्रति मेरा।
गुणी जनोें को देख हृदय, आल्हादित हो मेरा।।
वही आल्हाद प्रगट कर लो,
क्रोध वैर भावों को तजकर, मन पावन कर लो।
क्षमा गुण को मन में धर लो।।१।।
चिरकालीन शत्रुता भी यदि, किसी से हो मेरी।
उसे भूलकर मित्रभावना, बने प्रभो! मेरी।।
भावना सदा सरल कर लो,
चन्दन सी शीतलता से, मन को शीतल कर लो।
क्षमा गुण को मन में धर लो।।२।।
एक-एक ईंटों को चुनने, से मकान बनता।
एक-एक धागा बुनने से, परीधान बनता।।
यही क्रम गुण में भी धर लो,
एक-एक गुण से आत्मा को, परमात्मा कर लो।
क्षमा गुण को मन में धर लो।।३।।
दश धर्मों के आराधन से, मृदुता आती है।
भावों में ‘‘चन्दनामती’’ खुद, ऋजुता आती है।।
रत्नत्रय को धारण कर लो,
पर्वों का इतिहास यही, जीवन में अमल कर लो।
क्षमा गुण को मन में धर लो।।४।।