अल्पतम प्रमादवश भी यदि मैंने आपके प्रति उचित व्यवहार नहीं किया हो तो मैं नि:शल्य और कषायरहित होकर आपसे क्षमा—याचना करता हूँ। कोहेण जो ण तप्पदि, सुर–णरतिरिएहि कीरमाणे वि। उवसग्गे वि रउद्दे, तस्स खमा णिम्मला होदि।।
जो देव, मानव तथा तिर्यंच पशुओं के द्वारा घोर, भयानक उपसर्ग पहुंचाने पर भी क्रोध से तप्त नहीं होता, उसी के निर्मल क्षमा होती है।