हर प्राणी मानसिक सुख शांति पूरे मन से चाहता है। व्यक्ति कितना ही पैसा कमा ले, इससे सुख शांति नहीं मिल जाती। यही वजह उसे और अधिक परेशान करती है। झूठी जी हजूरी या चापलूसी के दम पर मिली शांति क्षणिक होगी। जब तक आपके पास पैसा या उच्च पद हो तभी तक आपकी पूछ होगी कुछ सिद्धांत है जिन्हें जीवन में उतारने पर इस सुख शांति को बनाये रखने में मदद मिल सकती है।
जब कोई आपसे परामर्श मांगे, तभी दे : बिना मांगे सलाह देने पर कीमती समय भी नष्ट होगा और यदि आपकी सलाह नहीं मानी तो आपको कष्ट होगा। किसी के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप भी न करें, न ही किसी के कार्य में दोष निकालें । हर व्यक्ति अपने अनुभव से ही सीखता है। अपनी कमजोरियों को जानने के लिए रोज डायरी लिखें, अपने निंदकों अथवा शत्रुओं की बातों पर भी ध्यान दें और आत्म निरीक्षण के माध्यम से आत्म सुधार हेतु सदैव तैयार रहे। तभी आप बन सवेंगे पुरुषोत्तम । क्षमा बड़न को चाहिए : क्षमा भाव एवं अहिंसा सबसे बड़ा हथियार है। यहाँ ‘बड़न को चाहिए’ का अर्थ आयु में बड़े व्यक्ति से नहीं बल्कि विशाल हृदय से है। ईर्ष्या और परनिंदा से बचें : जो प्रभु के यहां से निश्चित है, उतना ही मिलता है। ‘हानि—लाभ,जीवन—मरण, जस—अपजस विधि हाथ।’ फिर भला ईष्र्या द्वेष क्यों ? ईष्र्या, द्वेष, घृणा कई बीमारियों को जन्म देती है। सामर्थ्य अनुसार कार्य करें : अपनी शक्ति से अधिक कार्य करना भी अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है।
अति आराम भी उतना ही दु:ख दायी है, उससे भी शरीर में जकड़न आ जाती है। तनाव और नकारात्मक सोच से सदैव बचें, यही स्वस्थ रहने का श्रेष्ठतम सूत्र है। निर्मल मन, सरलता, सहजता, परोपकार की श्रेष्ठतम भावना से नाता रखें ताकि आप सत चित्त आनंद स्वरूप होकर पूर्णानंद प्राप्त कर सवें। परोपकार से मन में घमंड नहीं आता है। मन जैसा सोचता है वैसा प्राणी का जीवन हो जाता है। इसलिए सदैव उत्कृष्टतम लोगों के सुभाषितों से, अच्छे लोगों की सोहबत से अपना नाता रखें तो आपका जीवन श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त कर सकेगा। जो जीवन का असली मूल्य समझ जाता है वह स्वयं इसकी कीमत करता है। सदैव कर्मयोगी बने, जनहित में सतत उत्कृष्ट कार्य करते रहें। यही जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता है। जिसने यह समझ लिया वही विश्व के सर्वोत्कृष्ट व्यक्तियों में गिना जायेगा।